आलस पे कुछ मुहावरे बताइये
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- अंग-अंग मुसकाना (बहुत प्रसन्न होना) – विद्यालय में प्रथम स्थान पाने पर आयुष का अंग-अंग मुसकरा रहा है।
- अँगूठा दिखाना (साफ़ इंकार करना) – उसने कोमल से पुस्तक माँगी, लेकिन उसने अँगूठा दिखा दिया।
- अंधे की लकड़ी (एकमात्र सहारा) – श्रवण कुमार अपने माता-पिता के लिए अंधे की लाठी था।
- अगर-मगर करना (बहाने बनाना) – जब मैंने अपने मित्र से मुसीबत के समय सहायता माँगी तो वह अगर-मगर करने लगा।
- आँखों में धूल झोंकना (धोखा देना) – सुभाष चंद्र बोस आँखों में धूल झोंककर भारत से गायब हो गए।
- अक्ल पर पत्थर पड़ना (कुछ समझ में न आना) – आयुष आजकल ऐसे काम करता है, जिसे देखकर लगता है कि उसकी अक्ल पर पत्थर पड़ गया है।
- अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मारना (स्वयं अपना नुकसान करना) – सरकारी नौकरी छोड़कर अपनी दुकान खोलने की बात करना अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है।
- आसमान सिर पर उठाना (बहुत शोर मचाना) – कक्षा में किसी अध्यापक के न होने के कारण छात्रों ने आसमान सिर पर उठा लिया।
- आँखें फेर लेना (बदल जाना) – मुसीबत आने पर अपने भी आँखें फेर लेते हैं।
- अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना (अपनी प्रशंसा स्वयं करना) – अजय तुम कोई काम तो करते हो नहीं, बस अपने मुँह मियाँ मिठू बनते रहते हो।
- आँखें चुराना (सामने आने से कतराना) – परीक्षा में कम अंक लाने के कारण पुत्र पिता से आँखें चुरा रहा है।
- आँखें खुलना (होश आ जाना) – जब उसे अपने पुत्र की हरकतों का पता चला, तो उसकी आँखें खुल गईं।
- आगा-पीछा करना (इधर-उधर होना) – प्राचार्य के मैदान में आते ही छात्र आगा-पीछा करने लगे।
- आस्था हिलना (विश्वास उठना) – आजकल सच्चाई और ईमानदारी के प्रति लोगों की आस्था हिलने लगी है।कान भरना (चुगली करना) – ज्ञान को कान भरने की बुरी आदत है।
- कोई जोड़ न होना (मुकाबला न होना) – नेहा की लिखाई का कोई जोड़ नहीं है।
- कातर ढंग से देखना (भय के भाव से नज़र बचाकर देखना) – बिना कारण पिटने पर ड्राइवर मुझे कातर भाव से देखने लगा।
- कसर निकालना (कमी पूरी करना) – व्यापारियों ने त्योहारों के अवसर पर वस्तुओं को अत्यधिक दामों पर बेचकर कसर निकाल लेते हैं।
- कमर तोड़ना (बहुत सुंदर लिखना) – अपने इस निबंध को लिखते हुए नेहा ने कमर तोड़ दिया है।
- कान भरना (चुगली करना) – रजत हमेशा आयुष के खिलाफ अध्यापक के कान भरता रहता है।
- कोल्हू का बैल (लगातार काम करना) – मैं यहाँ लगातार कोल्हू के बैल की तरह लगा रहता हूँ और तुम हो कि रात दिन मौज-मस्ती करते रहते हो।
- कलई खुलना (भेद खुलना) – पड़ोसी के घर में रोज महँगे-महँगे समान आ रहे थे। अचानक एक दिन पुलिस के आने से उसकी सारी कलई खुलगई।
- कानोकान खबर न होना (बिलकुल खबर न होना) – बदनामी के डर से मेहता जी कब दिल्ली छोड़कर चले गए, किसी को कानों कान खबर नहीं हुई।
- खटाई में पड़ना (काम में अड़चन आना) – अच्छा खासा क्रिकेट खेल का आयोजन होने वाला था लेकिन बारिश के चलते सारा खेल का कार्यक्रम खटाई में पड़ गया।
- खाक छानना (दर-दर भटकना) – नौकरी की तालाश में आजकल पढ़े-लिखे युवक दर-दर खाक छान रहे हैं।
- गुड़गोबर होना (बात बिगड़ जाना) – अच्छा-खासा पिकनिक पर जाने का कार्यक्रम बना था लेकिन अचानक दंगा होने के कारण दिल्ली बंद ने सारा गुड़ गोबर कर दिया।
- खाक में मिलाना (नष्ट-भ्रष्ट कर देना) – अमेरिका ने ईराक को खाक में मिला दिया।
- घी के दिए जलाना (खुशियाँ मनाना) – बेटे के आई. ए. एस. बनने पर माँ-बाप ने घी के दिए जलाए।
- घोड़े बेचकर सोना (गहरी नींद सोना) – बोर्ड परीक्षा सिर पर है और तुम घोड़े बेचकर सो रहे हो।
- चिकना घड़ा (बेअसर/निर्लज्ज) – उसे कितना भी कुछ कह लो वह तो चिकना घड़ा है।
- छक्के छुड़ाना (बुरी तरह हरा देना) – भारतीय सैनिकों ने युद्ध में पाकिस्तानी सैनिकों के छक्के छुड़ा दिए।
- छठी का दूध याद आना (कठिनाई का अनुभव होना) – बिना परिश्रम के परीक्षा में बैठने से आयुष को छठी का दूध याद आ गया।
- छाती पर मूंग दलना (बहुत तंग करना) – मोहनलाल के मेहमान साल भर उसकी छाती पर मूंग दलते रहते हैं।
- टका-सा जवाब देना (साफ़ मना कर देना) – मैंने जब हरि प्रसाद से मुसीबत के समय उधार पैसे मांगे तो उसने टका-सा जवाब दे दिया।
- दाल में काला होना (कुछ गड़बड़ होना) – उसके घर पुलिस आई है, लगता है दाल में कुछ काला है।
- नौ-दो ग्यारह होना (भाग जाना) – चोर किमती सामान उड़ाकर नौ-दो ग्यारह हो
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