आम केे अभागेपन में संभवतः एक ही सुखद अपवाद था – 1 point क) उसका नीरस हो जाना ख) संज्ञा लुप्त हो जाना ग) सूख कर ठूँठ हो जाना घ) अनुभूति कम हो जाना
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सही विकल्प होगा...
➲ (ख) संज्ञा लुप्त हो जाना
⏩ लेखक का कहना है, कि वर्षों से वह आम के उस पेड़ को यूं ही निस्पंद, नीरस और अर्थहीन देख रहा है लेकिन उसके बुजुर्ग कहा करते थे कि एक समय में पीपल और बरगद के वृक्ष भी उसकी आजादी के सामने कुछ नहीं थे। आज वह नीरव (शांत) ठूँठ की भांति खड़ा है। वह चौराहे पर मानव संस्कृति का उल्लास-उतार लिए उन चारों राहो की संधि पर मिलता था। उसके एक और में आज वह नीरव ठूँठ की भांति खड़ा है और उसके अभागेपन में शायद एक सुखद अपवाद यही रह गया है कि उसके अंदर का स्नेहरस सूख गया है और संज्ञा के लुप्त हो जाने से उसके कष्ट की अनुभूति कम हो गई है।
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