Hindi, asked by Hyup, 1 year ago

आन का मान नाटक के द्वितीय अंक का सारांश अपने शब्दों में लिखिए

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Answered by Swarnimkumar22
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आन का मान नाटक के द्वितीय अंक का सारांश अपने शब्दों में लिखिए ?

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साहित्यकार हरि कृष्ण प्रेमी द्वारा रचित नाटक आन का मान मुगल कालीन भारत के इतिहास पर आधारित है जिसमें राजपूत सरदार दुर्गादास की स्वाभाविक वीरता को चित्रित कर उसके व्यक्तित्व की महानता दर्शाई गई है इस नाटक के माध्यम से नाटककार ने मानवीय गुणों को रेखांकित किया है तथा हिंदू मुस्लिम एकता यानी सांप्रदायिक सौहार्द के संदेश को प्रसारित करने की सफल कोशिश की है



‘ आन का मान ' नाटक के सर्वाधिक मार्मिक स्थलों से सम्बन्धित दूसरे अंक की कथा भीम नदी के तट पर स्थित ब्रह्मपुरी से प्रारम्भ होती है । ब्रह्मपुरी का नाम औरंगजेब ने इस्लामपुरी रख दिया है । औरंगजेब की दो पुत्रियों मेहरुन्निसा एवं जीनतुन्निसा में से मेहरुन्निसा हिन्दुओं पर औरंगजेब द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों का विरोध करती है , जबकि जीनतुन्निसा अपने पिता की नीतियों की समर्थक है । अपनी दोनों पुत्रियों की बात सुनने के बाद औरंगजेब मेहरुन्निसा द्वारा रेखांकित किए गए अत्याचारों को अपनी भूल मानकर पश्चाताप करता है ।

वह अपने बेटों विशेषकर अकबर द्वितीय के प्रति की जाने वाली कठोरता के लिए भी दु : खी होता है । उसके अन्दर अकबर द्वितीय की सन्तानों यानी अपने पौत्र - पौत्री क्रमशः बुलन्द एवं सफीयत के प्रति स्नेह और बढ़ जाता है । औरंगजेब अपनी वसीयत में अपने पुत्रों को जनता से उदार व्यवहार के लिए परामर्श देता है । वह अपनी मृत्यु के बाद अन्तिम संस्कार को सादगी से करने के लिए कहता है । वसीयत लिखे जाने के समय ही ईश्वरदास वीर दुर्गादास राठौर को बन्दी बनाकर लाता है । औरंगजेब अपने पौत्र - पौत्री यानी बुलन्द एवं सफीयत को पाने के लिए । दुर्गादास से सौदेबाजी करना चाहता है , लेकिन दुर्गादास इसके लिए राजी नहीं होता ।
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