आन लाइन शिक्षा का महत्व
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अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के उच्च शिक्षा विभाग द्वारा रविवार को ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया गया। यह परिचर्चा तात्कालिक परिस्थितियों (लॉकडाउन) (Lockdown) के रहते शिक्षकों (Teachers) की भूमिका पर थी। गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय ग्रेटर नोएडा (Greater Noida) के कुलपति प्रोफेसर भगवती प्रकाश शर्मा ने विषय की रूपरेखा रखते हुए कहा कि शिक्षकों को ऐसे कठिन समय में अपने दायित्व निर्वाहन को केंद्र में रखकर समाज और शिक्षकों का मनोबल बढ़ाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि ऐसे समय में शिक्षक की भूमिका और ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है। हमें अपने सभी विद्यार्थियों के साथ ऑनलाइन जुड़े रहना चाहिए। इस ऑनलाइन परिचर्चा में एमबीआरएसएम के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रोफेसर जे पी सिंघल सहित 100 से अधिक शिक्षा समाज से जुड़े प्रधानाचार्य, प्रोफेसर और बुद्धिजीवियों ने भाग लिया।
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ऑनलाइन शिक्षा छात्रों तक पहुंचने का सही माध्यम
चौधरी बंसी लाल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आरके मित्तल ने ऑनलाइन माध्यम को विद्यार्थियों तक पहुंचने का उचित माध्यम बताया। वहीं एनडीटीएफ अध्यक्ष डॉ राकेश पांडे ने कहा कि ऑनलाइन शिक्षा कभी भी वर्तमान शिक्षा का विकल्प नहीं हो सकती, लेकिन वर्तमान परिपेक्ष्य में विद्यार्थियों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
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परिचर्चा में इन कॉलेजों के शिक्षकों ने लिया भाग
शैक्षिक महासंघ मीडिया प्रभारी डॉ अजय कुमार ने बताया कि इस ऑनलाइन परिचर्चा का संचालन एबीआर की राष्ट्रीय सचिव ने किया और शिक्षा से जुड़े विश्वविद्यालय के प्रिंसिपल एवं प्रोफेसर आदि ने अपने इस विषय पर राय व्यक्त की। इनमें मुख्य रूप से प्रोफेसर पिसी झा, देशबंधु कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ राजीव अग्रवाल, स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ प्रवीण गर्ग, रामजस कॉलेज प्रिंसिपल मनोज खन्ना, भगत सिंह कॉलेज प्रिंसिपल डॉ अनिल सरदाना, दयाल सिंह कॉलेज प्रिंसिपल, डीएवी कॉलेज प्रिंसिपल रविंद्र गुप्ता, जेएनयू के प्रोफेसर माधव गोविंद, एबीआरएसएम के राष्ट्रीय संगठन मंत्री महेंद्र कपूर आदि ने भाग लिया ।
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ऑनलाइन शिक्षा-परीक्षा के सुझाव भेजे मंत्रालय
राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी डॉ संजय कुमार ने बताया कि एबीआरएसएम ने ऑनलाइन शिक्षा और ऑनलाइन परीक्षा के बारे में अपने सुझाव भी यूजीसी चेयरमैन डॉ डीपी सिंह एवं शिक्षा मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक को भिजवाए हैं।
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विद्यावान मनुष्य की विशेषताएँ :
संसार के हर व्यक्ति को सम्मान, यश, ख्याति, धन, मान सब कुछ विद्या से ही प्राप्त होती है। संसार में जितने भी महान तथा यशस्वी व्यक्ति हए हैं, वे विद्या से ही महान बने हैं। विद्यावान व्यक्ति अपनी अद्भुत विशेषताओं के कारण सदा ही प्रशंसनीय जीवन व्यतीत करता है। ऐसा व्यक्ति समाज के लिए, देश के लिए, घर के लिए, परिवार के लिए, स्वयं के लिए कलंकहीन जीवन जीता है।
कभी भी ऐसा इंसान न तो भूखा रहता है न ही किसी को भूखा रखता है क्योंकि उसके पास विद्यारूपी धन होता है।
प्राचीनकालीन विद्या :
प्राचीनकाल में विद्या ग्रहण करने तथा विद्या पढ़ाने का अधिकार केवल ब्राह्मणों को ही प्राप्त था। प्राचीन काल में विद्या देने वाला गुरु अपने शिष्य से धन-दौलत नहीं बल्कि कोई और त्यागने योग्य वस्तु माँगता था। पहले शिष्य सच्ची निष्ठा की भावना से विद्या प्राप्त करने में लीन हो जाते थे और गुरु भी सेवा निष्कपट होकर करते थे।
वर्तमानकालीन विद्या :
आजकल सभी गुरु हैं, सभी शिष्य हैं। आज विद्या का स्वरूप पूर्णतया बदल चुका है। आज विद्या ब्राह्मणों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सब इसे प्राप्त करने का अधिकार रखते हैं। सरकार भी पिछड़ी जाति के लोगों को पढ़ाने पर अधिक जोर दे रही है ताकि वे ऊँची जाति के लोगों से कंधे से कंधा मिलाकर चल सके।
लेकिन अब शिष्य व गुरु दोनों में उतनी जिम्मेदारी तथा कर्त्तव्य का भाव नहीं रहा, जो प्राचीनकाल में था। शिष्य गुरुओं की इज्जत नहीं करते तथा गुरु भी शिष्य को पूरी तरह समर्पित होकर नहीं पढ़ाते। आज विद्या में पैसा सबसे महत्त्वपूर्ण चीज बनकर रह गया है
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