Political Science, asked by rkharb5211, 7 months ago

आप अपने जीवन में भारतीय संविधान के बुनियादी मूल्यों को किस प्रकार दैनिकमें लाएंगे?व्यवहार स्पष्ट कीजिए​

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Answered by shashwat05
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Answer:

संविधान, संसद और राज्य विधान मंडलों या विधानसभाओं को उनके संबंधित क्षेत्राधिकार के भीतर कानून बनाने का अधिकार देता है। संविधान में संशोधन करने के लिए बिल संसद में ही पेश किया जा सकता है, लेकिन यह शक्ति पूर्ण नहीं है। यदि सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि संसद द्वारा बनाया गया कानून संविधान के साथ न्यायसंगत नहीं है तो उसके पास (सुप्रीम कोर्ट) इसे अमान्य घोषित करने की शक्ति है। इस प्रकार, मूल संविधान के आदर्शों और दर्शनों की रक्षा करने के लिए, सुप्रीम कोर्ट ने बुनियादी संरचना सिद्धांत को निर्धारित किया है। सिद्धांत के अनुसार, संसद संविधान के बुनियादी ढांचे में परिवर्तन या उसे नष्ट नहीं कर सकती है।

बुनियादी संरचना के विकास

"बेसिक स्ट्रक्चर (बुनियादी ढांचा)" शब्द का उल्लेख भारत के संविधान में नहीं किया गया है। लोगों के बुनियादी अधिकारों और संविधान के आदर्शों और दर्शन की रक्षा के लिए समय-समय पर न्यायपालिका के हस्तक्षेप के साथ यह अवधारणा धीरे-धीरे विकसित हुयी।

पहला संविधान संशोधन अधिनियम, 1951 को भारत सरकार बनाम शंकरी प्रसाद मामले में चुनौती दी गई थी। संशोधन को इस आधार पर चुनौती दी गयी थी कि यह संविधान के भाग III का उल्लंघन करता है और इसलिए इसे अवैध घोषित किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 368 के तहत संसद को मौलिक अधिकारों सहित संविधान के किसी भी भाग में संशोधन करने की शक्ति है। इस तरह का निर्णय न्यायालय में सज्जन सिहं बनाम राजस्थान सरकार के मामले में दिया था।

1967 में गोलक नाथ बनाम पंजाब सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले के फैसले को खारिज कर दिया। सुप्रीम ने कहा संसद के पास संसद के पास संविधान के भाग III में संशोधन करने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि मौलिक अधिकार श्रेष्ठ और स्थिर हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, अनुच्छेद 368, केवल संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया की अनुमति देता है और संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन के लिए संसद को पूर्ण शक्तियां नहीं देता है।

1971 में संसद ने 24वां संविधान संशोधन अधिनियम पारित कर दिया था। अधिनियम ने मौलिक अधिकारों सहित संविधान में कोई भी परिवर्तन करने के लिए संसद को पूर्ण शक्ति दे दी थी। इसने यह भी सुनिश्चत किया गया कि सभी संवैधानिक संशोधन बिलों पर राष्ट्रपति की सहमति जरूरी होगी।

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