Hindi, asked by gauravkandoi1460, 1 year ago

आप अपनी किसी यात्रा के खट्टे मीठे अनुभव लिखते हुए लेख लिखिए

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Answered by AyushMonga
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एक दिन हमने सैर पर निकलने का इरादा किया । यह हमारी मनमौजी सैर थी । हमने गंतव्य का पहले से कोई निर्णय नहीं किया । हम यह भी नहीं जानते थे कि हम समूची सैर पैदल करेंगे या किसी वाहन पर ।

हमें एक दिन की सैर पर निकलना था और हमारा फैसला था कि हम जैसे चाहेंगे, यात्रा करेंगे । तैयार होकर हम पैदल यात्रा पर निकल पड़े । हंसते-बोलते हम पैदल चलते रहे । इतने में हमें दादर स्टेशन दिख पड़ा और हमने एकाएक ट्रेन से चलने का फैसला कर लिया । हम सभी के पास लोकल ट्रेन से यात्रा करने के मासिक पास थे ।



दोपहर का समय था । ट्रेन में अधिक भीड़ नहीं थी । हम दादर से ट्रेन पर चढ़े । जोगेश्वरी स्टेशन आने पर हमने ट्रेन से उतर जाने का फैसला किया । स्टेशन से बाहर निकल कर हमे जोगेश्वरी की गुफाएँ देखने का ख्याल आया । यही कई छोटी-छोटी सुन्दर गुफायें है ।

मैंने यह गुफायें पहली बार देखीं । हमने कुछ समय इन गुफाओं को देखने मे लगाया । गुफाँ देखकर हम बाहर निकले और पुन: ट्रेन से बोरीवली जाने का फैसला कर लिया । बोरीवली पहुँचते-पहुँचते शाम के पाँच बज गये थे । एक बार हम लोगों ने नजदीक के किले को देखने का इरादा किया, लेकिन फौरन ही यह विचार त्याग कर कनारी गुफायें देखने का फैसला कर लिया ।


हमने कुछ लोगों से कनारी गुफाओं का मार्ग पूछा । कुछ लोग हमारा मजाक बनाने लगे, लेकिन हम उसकी परवाह किए बिना आगे बढ़ गए । एक वृद्ध सज्जन ने हम मार्ग बता दिया । हम तेजी से चलने लगे । रास्ते में हमने एक जलधारा पार की और गुफाओ के नजदीक पहुंच गए ।

यही पहुंच कर हम रास्ता भूल गये । चारों तरफ झाडियाँ और जंगल-सा था । दूर-दूर तक कोई आदमी नहीं दिखाई देता था । रास्ते का भी कोई नामोनिशान नहीं दिखाई पड रहा था । हम एक पहाड़ी पर धीरे-धीरे चढ़ते रहे । पहाड़ी के ऊपर पहुँचकर हमें गुफायें दिखने लगीं और हम उस ओर बढ़ गए ।



शाम ढल रही थी । कुछ ही देर में अंधेरा होने वाला था, इसलिए हमने जल्दी-जल्दी गुफाये देखनी शुरू कीं । एक बड़ी गुफा के भीतर एक विशाल मूर्ति थी । एक स्थान पर बहुत बड़ी कच्ची सुरंग-सी दिखी । हमने अन्दर झाका, पर हमें कुछ दिखाई नहीं दिया । ध्यान देने पर हमे उसके भीतर पानी गिरने की आवाज सुनाई दी ।

उसमें घुसने पर हमने देखा कि आगे जाकर वह खुली हुई है । उसके भीतर से खुला आसमान बडा रोमाचक दिखाई पड़ा । एक तरफ ऊपर से पानी की एक पतली धार गिर रही थी । उसकी आवाज की गूंज बड़ी रहस्यमय लग रही थी ।

कहा जाता है कि प्राचीन काल में इरम स्थान पर धर्मगुरा जनता को धार्मिक प्रवचन सुनाया करते थे । अब तक अंधेरा हो चला था । कई छोटी-छोटी गुफायें हम नहीं देख पाये थे । अंधेरा घिरता देख हमने लौट चलने का इरादा कर लिया ।

हम अपने साथ खाने का कुछ सामान रख लाये थे । यहीं बैठकर हमने कुछ नाश्ता किया और थोड़ी देर आराम करके वापसी यात्रा पर चल पड़े । वापसी यात्रा बडी लोमहर्षक रही । अब तक रात घिर आई थी । हमें रास्ता बिल्कुल ही नहीं दिखाई दे रहा था ।

जलधारा पार करने के बाद हम रास्ता भूल गए । हम एक-दूसरे का हाथ पकडे जंगल में इधर-उधर भटकने लगे । कभी-कभी हमें बडा डर लगने लगता और हमारी आखों के सामने कोई जंगली पशु आने लगता । मृत्यु के भय से हम सभी कांपने लगे । इतने पर भी हमने धैर्य नहीं छोड़ा और अन्दाजे से आगे बढ़ते रहे ।

थोड़ी देर बाद हमें गाने की मधुर ध्वनि सुनाई पड़ी । आदमी की आवाज ने हमें जितना ढाढस बंधाया, उसकी कल्पना करना भी कठिन है । हम सब बड़ी जोर से सहायता की पुकार करने लगे । हमारी आवाज सुनते ही गाना बन्द हो गया । कुछ देर शोर मचाने के बाद भी जब हुमारी ओर कोई व्यक्ति आता नहीं दिखा, तो हम फिर निराश हो गए और आगे बढ़ चले ।

इतने में हमें हल्की-सी रोशनी दिखाई दी । हम उसी ओर चल पड़े । वह एक झोंपडी थी । पास पहुंचने पर कई कुत्ते जोर-जोर से भौंकने लगे । हम सहायता के लिए पुन: चिल्ला पड़े । हमारी आवाज सुनकर झोंपडी से एक व्यक्ति निकला और उसने हमें बोरीवली का रास्ता बता दिया । अब हम बोरीवली से अधिक दूर नहीं थे ।

लगभग एक घंटे के बाद हम पुन: दादर स्टेशन पहुंच गए । अब तक रात के बारह बज चुके थे । आज तक हम सभी को यह लोमहर्षक सैर याद है ।

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