Hindi, asked by pinkikushwaha295, 6 months ago

आप अपने माता-पिता या दोस्तों के संग मेला देखने गये होंगे। ऐसे ही किसी "मेले का आँखों देखा
हाल लगभग 150 शब्दों में लिखिए।​

Answers

Answered by 20180029983
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Answer:

हमारे देश में मेलों और त्योहारों की कोई कमी नहीं है. हमारे गांव में भी साल में दो बार रामलीला मैदान में मेला लगता है. मुझे और मेरे दोस्तों को मेला देखना बहुत पसंद है इसलिए हम हर बार मेला देखने जाते है. मेले की एक दो दिन पहले से ही हम बहुत खुश हो जाते है. मेले वाले दिन हम नए कपड़े पहन कर सुबह सुबह तैयार हो जाते है.

हमारे देश में मेलों और त्योहारों की कोई कमी नहीं है. हमारे गांव में भी साल में दो बार रामलीला मैदान में मेला लगता है. मुझे और मेरे दोस्तों को मेला देखना बहुत पसंद है इसलिए हम हर बार मेला देखने जाते है. मेले की एक दो दिन पहले से ही हम बहुत खुश हो जाते है. मेले वाले दिन हम नए कपड़े पहन कर सुबह सुबह तैयार हो जाते है.पिताजी से मेले में खर्च करने के लिए कुछ रुपए मिल जाते है. इसके बाद मैं अपने दोस्तों के साथ मेला देखने निकल पड़ता हूं. मेला रामलीला मैदान में लगता है जो कि हमारे घर से 1 किलोमीटर दूर पड़ता है. हम मेले में पैदल ही जाते हैं और आने जाने वाले हो लोगों और हमारे जैसे बच्चों को देखते है वे वह मेले से खरीदारी करके लौट रहे होते हैं खूब खुश होते हैं और गुब्बारे और सीटियां लेकर आते हैं यह देख हमारा उत्साह और बढ़ जाता है.

हमारे देश में मेलों और त्योहारों की कोई कमी नहीं है. हमारे गांव में भी साल में दो बार रामलीला मैदान में मेला लगता है. मुझे और मेरे दोस्तों को मेला देखना बहुत पसंद है इसलिए हम हर बार मेला देखने जाते है. मेले की एक दो दिन पहले से ही हम बहुत खुश हो जाते है. मेले वाले दिन हम नए कपड़े पहन कर सुबह सुबह तैयार हो जाते है.पिताजी से मेले में खर्च करने के लिए कुछ रुपए मिल जाते है. इसके बाद मैं अपने दोस्तों के साथ मेला देखने निकल पड़ता हूं. मेला रामलीला मैदान में लगता है जो कि हमारे घर से 1 किलोमीटर दूर पड़ता है. हम मेले में पैदल ही जाते हैं और आने जाने वाले हो लोगों और हमारे जैसे बच्चों को देखते है वे वह मेले से खरीदारी करके लौट रहे होते हैं खूब खुश होते हैं और गुब्बारे और सीटियां लेकर आते हैं यह देख हमारा उत्साह और बढ़ जाता है.मेले में पहुंचते ही सभी जगह शोरगुल होता रहता है और बहुत ही भीड़ भाड़ रहती है. मेले में भीड़ भाड़ होने की वजह से कुछ लोग धक्का-मुक्की भी करते है. हम मेले में पहुंचते हैं पूरे मेले का एक राउंड लगाते हैं और फिर झूला झूलते है कबड्डी का मैच, जादूगर का खेल देखते है. कुछ समय बाद हमें भूख लगती है तो हम समोसे, कचोरी और गोलगप्पे खा कर अपना पेट भरते है.

हमारे देश में मेलों और त्योहारों की कोई कमी नहीं है. हमारे गांव में भी साल में दो बार रामलीला मैदान में मेला लगता है. मुझे और मेरे दोस्तों को मेला देखना बहुत पसंद है इसलिए हम हर बार मेला देखने जाते है. मेले की एक दो दिन पहले से ही हम बहुत खुश हो जाते है. मेले वाले दिन हम नए कपड़े पहन कर सुबह सुबह तैयार हो जाते है.पिताजी से मेले में खर्च करने के लिए कुछ रुपए मिल जाते है. इसके बाद मैं अपने दोस्तों के साथ मेला देखने निकल पड़ता हूं. मेला रामलीला मैदान में लगता है जो कि हमारे घर से 1 किलोमीटर दूर पड़ता है. हम मेले में पैदल ही जाते हैं और आने जाने वाले हो लोगों और हमारे जैसे बच्चों को देखते है वे वह मेले से खरीदारी करके लौट रहे होते हैं खूब खुश होते हैं और गुब्बारे और सीटियां लेकर आते हैं यह देख हमारा उत्साह और बढ़ जाता है.मेले में पहुंचते ही सभी जगह शोरगुल होता रहता है और बहुत ही भीड़ भाड़ रहती है. मेले में भीड़ भाड़ होने की वजह से कुछ लोग धक्का-मुक्की भी करते है. हम मेले में पहुंचते हैं पूरे मेले का एक राउंड लगाते हैं और फिर झूला झूलते है कबड्डी का मैच, जादूगर का खेल देखते है. कुछ समय बाद हमें भूख लगती है तो हम समोसे, कचोरी और गोलगप्पे खा कर अपना पेट भरते है.इसके बाद हम कुछ खिलौने खरीदते है और एक बार फिर से मेले का एक राउंड और लगाते है. हम दिन भर मेले में रहकर उस का आनंद उठाते है. जैसे ही शाम होती है हम सब खुशी-खुशी घर लौट आते है.

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