आप अपनी वर्तमान शिक्षा प्रणाली के बारे में क्या सोचते है
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कई साल बाद बच्चों की शिक्षा व शिक्षा प्रणाली से पाला पड़ा. कहाँ दूसरी कक्षा के बच्चे पराग, लोटपोट, बालक,
इनकी भाषा देखिए
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बालहंस, चंपक, चंदामामा, बालभारती जैसे साप्ताहिक, पाक्षिक और मासिक बाल सुलभ पत्रिकाएँ (पुस्तक) पढ़ते थे और कहाँ आज 5वीं के बच्चे को भी ककहरा सिखाने की नौबत आ रही है. बच्चे अक्षर नहीं पहचानते, मात्राएँ नहीं जानते, जोड़ घटाव सही नहीं आता, पहाड़ों के नाम पर 5वीं के छात्र को पहाड़े केवल 7 तक आते हों तो कमाल है. ऐसी शिक्षा का क्या उपयोग होगा हमारे बच्चों के भविष्य के
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