आप भाग्यवादी हैं या कर्मठ इस विषय पर अनुच्छेद लिखिए
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अध्ययन स्वयमेव अद्भुत आनन्द का स्रोत है। अध्ययन से ज्ञानेन्द्रियाँ ही आनन्द का अनुभव नहीं करती हैं अपितु व्यर्थ की चिन्ताएँ भी मिट जाती हैं। शरीर के प्रत्येक अंग को खुराक देना हमारा धर्म है। सुपाच्य भोजन से जिह्ना को रस मिलता है, भव्य रूप दर्शन से आँखें आनंदित होती हैं, मधुर राग-ध्वनि कानों को संतुष्टि देती है, वैसे ही स्वाध्याय मस्तिष्क का आहार बनकर उसे आनंदित करता है। अध्ययन के द्वारा मन और मस्तिष्क की विकृतियाँ नष्ट होती हैं। धार्मिक एवं श्रेष्ठ पुस्तकों का अध्ययन व्यक्ति को चरित्रवान बनाता है। चरित्रवान की समाज में प्रतिष्ठा बढ़ती है। श्रेष्ठ पुस्तकों के अध्ययन से बौद्धिकता बढ़ती है, मन के विकार दूर होते हैं। मन के संकल्प-विकल्प विस्तार पाते हैं जिससे रस और आनंद प्राप्त होता है। पुस्तकें उत्तम मित्र हैं। सचमुच सर्वोत्तम विश्वविख्यात पुस्तकें अमूल्य रत्नों का भंडार हैं। अकेली गीता का अध्ययन-मनन-चिन्तन व्यक्ति को कर्मों के बंधन से मुक्ति दिला सकती है।
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भाग्य के भरोसे जो बैठे रहते हैं उन्हें वो भी नहीं हासिल होता जिनके हकदार वो हैं क्यूंकि पहले कर्म है I कर्म ही भाग्य बनाता है Iरविन्द्र नाथ टैगोर का कहना है :
"तुम्हारा भाग्य दोष तुम्हारे ललाट के पसीने से धूलेगा " अर्थात कर्म करने से ही पसीना चलेगा और भाग्य का दोष धुल जाएगा I गीता में भगवान् कृष्ण ने कहा है I कर्मण्येवाधिकारस्ते ,माँ फलेषु कदाचन "अर्थात कर्म पर ही हमारा अधिकार है फल पर नहीं I जो कर्मवीर होते हैं वो एक-एक क्षण को अपने हाथ से निकलने नहीं देते I
"जो कभी अपने समय को यूँ गवांते हैं नहीं I
काम करने के समय बातें बनाते हैं नहीं II
यत्न करनेमें जो कभी भी जी चुराते हैं नहीं I
भीड़ में जो चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं II
ऐसे ही लोग कर्मवीर होते हैं और वीर के आगे कुछ भी नहीं I
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