आप कैसे कह सकते हैं कि रहीम जी के दोहों की प्रासंगिकता आज भी है?
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आज के समय में रहीम के दोहों की प्रासंगिकता वैसे ही बनी हुई है जैसे पहले थी। रहीम के दोहे मानवीय संबंधों के ऊपर हैं। उनके दोहों में स्पष्ट रूप से उदारता दिखती है। रहीम ने आपसी संबंधों के ऊपर लिखा है। उन्होंने कहा है यदि माला टूट जाती है तो हम उसे पुन: जोड़ते हैं। इसी प्रकार हमारे अपने जब हमसे रूठ जाते हैं तो उनको मनाना चाहिए। उन्होंने सादा जीवन और परोपकार दोनों को अहमियत दी है जो आज के समय में बहुत जरूरी है।
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