Hindi, asked by tayarshaikh1234, 9 months ago

आप ने साबरमती आश्रम देखा क्रिया छट पर लिखो​

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Answered by sanya2004srivastav
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आश्रम से प्रारंभ में निवास के लिये कैनवास के खेमे और टीन से छाया हुआ रसोईघर था। सन् 1917 के अंत में यहाँ के निवासियों की कुल संख्या 40 थी। आश्रम का जीवन गांधी जी के सत्य, अहिंसा आत्मससंयम, विराग एवं समानता के सिद्धांतों पर आधारित महान प्रयोग था और यह जीवन उस सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक क्रांति का, जो महात्मा जी के मस्तिष्क में थी, प्रतीक था।

साबरमती आश्रम सामुदायिक जीवन को, जो भारतीय जनता के जीवन से सादृय रखता है, विकसित करने की प्रयोगाशाला कहा जा सकता था। इस आश्रम में विभिन्न धर्मावलबियों में एकता स्थापित करने, चर्खा, खादी एवं ग्रामोद्योग द्वारा जनता की आर्थिक स्थिति सुधारने और अहिंसात्मक असहयोग या सत्याग्रह के द्वारा जनता में स्वतंत्रता की भावना जाग्रत करने के प्रयोग किए गए। आश्रम भारतीय जनता एवं भारतीय नेताओं के लिए प्रेरणाश्रोत तथा भारत के स्वतंत्रता संघर्ष से संबंधित कार्यों का केंद्रबिंदु रहा है। कताई एवं बुनाई के साथ-साथ चर्खे के भागों का निर्माण कार्य भी धीरे-धीरे इस आश्रम में होने लगा।

आश्रम में रहते हुए ही गांधी जी ने अहमदाबाद की मिलों में हुई हड़ताल का सफल संचालन किया। मिल मालिक एवं कर्मचारियों के विवाद को सुलझाने के लिए गांधी जी ने अनान आरंभ कर दिया था, जिसके प्रभाव से 21 दिनों से चल रही हड़ताल तीन दिनों के अनान से ही समाप्त हो गई। इस सफलता के पचात् गांधी जी ने आश्रम में रहते हुए खेड़ा सत्याग्रह का सूत्रपात किया। रालेट समिति की सिफारिाों का विरोध करने के लिए गांधी जी ने यहाँ तत्कालीन राष्ट्रीय नेताओं का एक सम्मेलन आयोजित किया और सभी उपस्थित लोगों ने सत्याग्रह के प्रतिज्ञा पत्र हर हस्ताक्षर किए।

साबरमती आश्रम में रहते हुए महात्मा गांधी ने 2 मार्च 1930 ई. को भारत के वाइसराय को एक पत्र लिखकर सूचित किया कि वह नौ दिनों का सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ करने जा रहे हैं। 12 मार्च 1930 ई. को महात्मा गांधी ने आश्रम के अन्य 78 व्यक्तियों के साथ नमक कानून भंग करने के लिए ऐतिहासिक दंडी यात्रा की। इसके बाद गांधी जी भारत के स्वतंत्र होने तक यहाँ लौटकर नहीं आए। उपर्युक्त आंदोलन का दमन करने के लिए सरकार ने आंदोलनकारियों की संपत्ति जब्त कर ली। आंदोलनकारियों के प्रति सहानुभूति से प्रेरित होकर, गांधी जी ने सरकार से साबरमती आश्रम ले लेने के लिए कहा पर सरकार ने ऐसा नहीं किया, फिर भी गांधी जी ने आश्रमवासियों को आश्रम छोड़कर गुजरात के खेड़ा जिले के बीरसद के निकट रासग्राम में पैदल जाकर बसने का परार्मा दिया, लेकिन आश्रमवासियों के आश्रम छोड़ देने के पूर्व 1 अगस्त 1933 ईं. को सब गिरफ्तार कर लिए गए। महात्मा गांधी ने इस आश्रम को भंग कर दिया। आश्रम कुछ काल तक जनशून्य पड़ा रहा। बाद में यह निर्णय किया गया कि हरिजनों तथा पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए शिक्षा एवं शिक्षा संबंधी संस्थाओं को चलाया जाए और इस कार्य के लिए आश्रम को एक न्यास के अधीन कर दिया जाए।

साबरमती आश्रम के शिष्यों द्वारा ही महात्मा गाँधी को "बापू "नाम से सर्वप्रथम सम्बोधित किया गया, जो उनके लिए एक बड़ा सम्मान था |

Answered by gaikwadaarchit
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Answer: sahayak kriya: होगा

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