आपकी होटी बहन पढ़ाई पर ਧਯਾਨ
न देकर मोबाइल पर गेम खेलती है। उसे
मोबाइल पर अधिक रोमन खेताने की सलाह देते
हुए पर लिखिए।
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मोबाइल गेमिंग किस कदर बच्चों पर दिन प्रतिदिन हावी होता जो रहा है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बच्चे कुछ भी कर गुजरने को तैयार है। खुद को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ अपने आसपास के लोगों को भी चोट पहुंचाने से गुरेज नहीं करते। महज आठ साल के कक्षा तीसरी में पढऩे वाला छात्र खुदकशी कर लेता है। अंतिम समय में यह बात सामने आती है कि मोबाइल गेम खेलते-खेलते कमरे चला जाता है। जब मां नाश्ते के लिए बुलाती है तो बच्चा पंखे से लटकते हुए मिलता है।
विशेषज्ञ बताते हैं कि मोबाइल गेमिंग से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। क्रेज इस कदर है कि बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं। जा भी रहे हैं तो क्लास बंक कर रहे या होमवर्क छोड़ देते हैं। कुछ बोलिए तो चिढ़ जाते हैं। नकारात्मक प्रभाव काफी पड़ रहा है।
बच्चों का वजन घट रहा, बढ़ रहा मोटापाः छह साल के सौविक का वजन लगभग 20 किलो था। पिछले 2 महीने में सौविक के वजन में तेजी से कमी आई। जब उसके गिरते वजन और सेहत को देखते हुए अभिभावकों ने डॉक्टर से संपर्क किया, तो डॉक्टर का पहला सवाल था, क्या बच्चे को खाना खाते हुए मोबाइल पर विडियो देखने या गेम्स खेलने की आदत है। सौविक की मां ने इसका जवाब हां में दिया। सौविक ऐसा अकेला बच्चा नहीं है, जिसे खाना खाते हुए मोबाइल पर वीडियो देखने या गेम्स खेलने की लत लग गई है। इन दिनों कई बच्चों में वजन घटने, मोटापा बढऩे, कुपोषण जैसी सामान्य सी लगने वाली समस्याएं बढ़ती जा रही हैं।
- गेमिंग डिसऑर्डर की वजह से ब्रेन के न्यूरो ट्रांसमीटर में बदलाव आने शुरू हो जाते हैं। इसी बदलाव से बच्चों के व्यवहार में बदलाव देखने को मिलता है।
- बार-बार एक ही तरह के विचार और सस्पेक्ट्रम डिसऑर्डर जैसी बीमारियां होनी शुरू हो जाती है।
- इन गेम्स की वजह से कई बार बच्चे खुद को ओवर बर्डन या ओवर प्रेशर में महसूस करते हैं।
- गुस्सा करने के साथ ही जिद्दी हो जाते हैं। नींद में कमी आने से एजुकेशन में भी उनकी परफॉर्मेंस कमजोर होती है।
- नींद की समस्या होना
- समाज से कटना
- एकाग्रता में कमी, भूलने की बीमारी होना
- गेम से आक्रामकता बढऩा
- बच्चों के स्वभाव में चिड़चिड़ापन
- रचनात्मक कार्य करने को समय की कमी
- आंखों की रोशनी प्रभावित हो रही।
- लगातार बैठे रहने से मोटापा, ब्लड प्रेशर और डायबिटीज जैसी समस्याएं।
- खुद को और दूसरों को नुकसान पहुंचाना।
- बच्चा गुमसुम और लोगों से अलग-अलग (एकाकी) रहता हो
- बच्चे में गुस्सा कम आता हो, लेकिन चिड़चिड़ापन हो
- पढ़ाई में सामान्य हो लेकिन खेलकूद में सबसे कमजोर
- शारीरिक दुबले-पतले और मौसमी बीमारियों से ग्रसित रहने वाले
- मेंटल स्टेट्स एग्जामिनेशन।
- क्लिनिकल इवैल्यूएशन।
- साइकोलॉजिकल टेस्ट और ब्रेन इमेजिंग।
- साइकोथेरेपी, बिहेवियर थेरेपी और दवाइयां।
- बच्चों के लिए मां-बाप का समय।
ब्लू व्हेल, पबजी, पोकेमॉन गो, द कार सर्फिंग चैलेंज, वैंपायर बीटिंग, स्त्रार्टिंग चैलेंज, काइली लीप चैलेंज, द चोकिंग गेम, इंटू द डेड टू, एस्पहॉल्ट 9 लीजेंड्स, प्रो इवैल्यूएशन स्कोर, इको पुल और डेयर एंड ब्रेव जैसे वीडियो गेम।
- गूगल प्ले स्टोर पर जाएं। वहां सेटिंग ऑप्शन में जाकर माय एप्स एंड गेम्स को ओपन करें। इसमें लाइब्रेरी, अपडेट्स और इन्स्टॉल्ड में जाकर ये देखें कि क्या इंस्टॉल और क्या अनस्टॉल हुआ है।
- बच्चे के मोबाइल में भी पेरेंट्स अपना ही मेल आइडी और पासवर्ड दें, ताकि बच्चा जब भी कोई गेम, एप आदि इंस्टॉल करे तो या तो वह आपसे पासवर्ड मांगेगा या फिर उसकी जानकारी आपके मेल आइडी में आ जाएगी।
- स्क्रीन रिकॉर्डर सॉफ्टवेयर भी अपलोड कर सकते हैं। इससे लाभ यह होगा कि जो भी काम उस मोबाइल पर किया है वह आप भी देख सकेंगे।
- बी स्मार्ट एप या एप लॉक जैसे एप्लीकेशंस को डाउनलोड करके कई गेम्स, एप्लीकेशन आदि को काफी हद तक डाउनलोड होने से रोक सकते हैं।
कई बच्चे गेम इसलिए खेलते हैं जो किन्हीं कारणों से खुद को अकेला महसूस करते हैं या किसी कारण से निराश हैं। ऐसे मामले एक-दूसरे को देखकर और भी बढ़ जाते हैं, इसलिए अब बच्चों के लिए अधिक ज्यादा सतर्क होने की जरूरत है। हानिकारक गेम्स खेलने के दौरान बच्चों के बर्ताव में नकारात्मक परिवर्तन आता है उस पर गौर करें।
- डॉ.अशोक तालपात्रा, बाल रोग विशेषज्ञ
अगर बच्चे मोबाइल इस्तेमाल कर रहे हैं तो इस बात पर नजर रखी जाए कि वह किन चीजों में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं। अगर बच्चा मोबाइल में गेम, पबजी या कोई अन्य गेम का लती हो रहा है तो उसे समझाएं। धीरे-धीरे उसकी एनर्जी बांटने की कोशिश करें। उसे अन्य कामों में लगाएं। गेम को डिलीट कर दें।