आपको जजन- जजन क्षेत्रों में लैंगिक भेदभाव देखने को भमलता है, उनमें से ककसी एक क्षेत्र की समस्या को समाधान के साथ रोचक तरीके से कहानी के रूप में प्रस्तत कीजजए। कहानी का शीर्षक अतनवायष हैं ।
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प्रत्येक बच्चे का अधिकार है कि उसकी क्षमता के विकास का पूरा मौका मिले. लेकिन लैंगिक असमानता की कुरीति की वजह से वह ठीक से फल फूल नहीं पते है साथ हैं भारत में लड़कियों और लड़कों के बीच न केवल उनके घरों और समुदायों में बल्कि हर जगह लिंग असमानता दिखाई देती है. पाठ्यपुस्तकों, फिल्मों, मीडिया आदि सभी जगह उनके साथ लिंग के अधरा पर भेदभाव किया जाता है यही नहीं एंका देखभाल करने वाले पुरुषों और महिलाओं के साथ भी भेदभाव किया जाता हैभारत
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लैंगिक समानता
हर बच्चा अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने का हकदार है, लेकिन उनके जीवन में लैंगिक असमानता और उनके लिए देखभाल करने वालों के जीवन में इस वास्तविकता में बाधा है।
Children react during an activity at an Anganwadi center in Cherki, Bihar.
UNICEF/UN0280921/Vishwanathan
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हर लड़के और लड़की के समग्र विकास में गतिशील प्रगति होना चाहिए
प्रत्येक बच्चे का अधिकार है कि उसकी क्षमता के विकास का पूरा मौका मिले. लेकिन लैंगिक असमानता की कुरीति की वजह से वह ठीक से फल फूल नहीं पते है साथ हैं भारत में लड़कियों और लड़कों के बीच न केवल उनके घरों और समुदायों में बल्कि हर जगह लिंग असमानता दिखाई देती है. पाठ्यपुस्तकों, फिल्मों, मीडिया आदि सभी जगह उनके साथ लिंग के अधरा पर भेदभाव किया जाता है यही नहीं एंका देखभाल करने वाले पुरुषों और महिलाओं के साथ भी भेदभाव किया जाता है
भारत में लैंगिक असमानता के कारण अवसरों में भी असमानता उत्पन्न करता है, जिसके प्रभाव दोनों लिंगो पर पड़ता है लेकिन आँकड़ों के आधार पर देखें तो इस भेदभाव से सबसे अधिक लड़कियां आचे आसरों से वंचित रह जाती हैं।
आंकड़ों के आधार पर विश्व स्तर जन्म के समय लड़कियों के जीवित रहने की संख्या अधिक है साथ ही साथ उनका विकास भी व्यवस्थित रूप से होता है. उन्हें पप्री स्कूल भी जाते पाया गया है जबकि भारत एकमात्र ऐसा बड़ा देश है जहां लड़कों की अनुपात में अधिक लड़कियों का मृत्यु दर अधिक है उनके स्कूल नहा जाने या बेच में ही किनही करणों से स्कूल छोड़ने की प्रवित्ति अधिक पाई गई है .
भारत में लड़के और लड़कियों के बालपन के अनुभव में बहुत अलग होता है यहाँ लड़कों को लड़कियों की तुलना अधिक स्वतंत्रता मिलती है. जबकि लड़कियों की स्वतंत्रता में अनेकों पाबंदियाँ होती हैं एस पाबंदी का असर उनकी शिक्षा, विवाह और सामाजिक रिश्तों, खुद के लिए निर्णय के अधिकार आदि को प्रभावित करती है।
लिंग असमानता एवं लड़कियों और लड़कों के बीच भेदभाव जैसे जैसे बढ़ती जाती हैं इसका असर न केवल उनके बालपन में दिखता है बल्कि वयस्कता तक आते आते इसका स्वरूप और व्यापक हो जाता है नतीजतन कार्यस्थल में मात्र एक चौथाई महिलाओं को ही काम करते पाया जाता है।
हालांकि कुछ भारतीय महिलाओं को विश्वस्तर पर विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावशाली पदों पर नेतृत्व करते पाया गया है, लेकिन भारत में अभी भी ज्यादातर महिलाओं और लड़कियों को पितृ प्रधान समाज के विचारों, मानदंडों, परंपराओं और संरचनाओं के कारण अपने अधिकारों का पूर्ण रूप से अनुभव करने की स्वतंत्रता नहीं मिली है।
समाधान
लड़कियों को शिक्षा, कौशल विकास, खेल कूद में भाग लेने एवं सशक्त कर के ही हम उन्हें समाज मैं महत्व दे सकते हैं .
लड़कियों को सशक्त कर के ही अल्पकालिक कार्यों जैसे सभी को शिक्षा, खून की कमी (एनीमिया), अन्य मध्यम अवधि कार्यक्रम जैसे बाल विवाह को समाप्त करना एवं अन्य दीर्घकालिक कार्यक्रम जैसे लिंग आधारित पक्षपात चयन करना आदि को समाप्त करने में हम सामूहिक रूप से विशिष्ट रूप से योगदान कर सकते हैं.
उद्धरण :
समाज में लड़कियों के महत्व को बढ़ाने के लिए पुरुषों, महिलाओं और लड़कों सभी को संगठित रूप मिलकर चलना होगा. समाज की धारणा व सोच बदलेगी, तभी भारत की सभी लड़कियों और लड़कों को लड़कियों के सशक्तिकरण के लिए केंद्रित निवेश और सहयोग की आवश्यकता है। उन्हें शिक्षा, कौशल विकास के साथ साथ सुरक्षा प्रदान करना होगा तब ही वे देश के विकास में युगदान कर सकेंगी.
लड़कियों को दैनिक जीवन में जीवन-रक्षक संसाधनों, सूचना और सामाजिक नेटवर्क तक पहुंचने काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता.
लड़कियों को विशेष रूप से केंद्रित कर बनाए कार्यक्रमों जैसे शिक्षा, जीवन कौशल विकसित करने, हिंसा को समाप्त करने और कमजोर व लाचार समूहों से लड़कियों के योगदान को स्वीकार कर उनके पहुँच इन कार्यकमों तक करा कर ही हम लड़कियों के लिए एक सुरक्षित वातावरण बना सकेंगे.