आपके द्वारा की गी किसी एतिहासिक स्थल की मुलाकात के बारे में 10 12 वाक्य लिखिए
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भारत में कई ऐतिहासिक स्थल हैं । उन्हें देखने की जिज्ञासा हमारे मन में भी रहती है । इसी चाव से एक बार हम भारत की सबसे पुरानी व ऊँची मीनार देखने के लिए दिल्ली के महरौली नामक ऐतिहासिक स्थल की यात्रा पर गए ।
महरौली का परिचय:
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इतिहासकारों का कथन है कि आज से हजारो वर्ष पूर्व यही पर दिल्ली थी । महाराज पृथ्वीराज का किला पिथौरागढ़ यहीं पर था । यहीं पर कुतुब मीनार नामक लोहे से बनी एक लाट है । अन्य भी बहुत सारे ऐतिहासिक स्थल हैं ।
मेरे एक दोस्त के द्वारा महरौली के नामकरण के बारे में पूछने पर वहाँ के मार्ग-दर्शक ने बताया कि यद्यपि इसके बारे में निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है लेकिन किवन्दतियों के आधार पर प्राचीन काल में वराहमिहिर नामक एक ज्योतिषाचार्य थे । यहीं उसकी वैधशाला थी ।
सत्ताईस नक्षत्रो के सत्ताइस मन्दिर थे । उन्हीं के नाम पर इस स्थान का नाम मिहिराबली पड़ा जो बाद में बिगड़ कर महरौली हो गया ।
कुतुब मीनार:
वह मार्ग-दर्शक हमको सबसे पहले कुतुब मीनार दिखाने ले गया । हम सब कुतुब मीनार के सामने खड़े हो गए । उसके बायी ओर सुन्दर घास का मैदान था । वहीं सामने एक प्राचीन भवन दिखाई दे रहा था । उसके बाहर टूटे-फूटे स्तम्मो के पत्थर बिखरे पडे थे ।
हमारे मार्ग-दर्शक ने बताया-इतिहास के अनुसार इस मीनार को कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनाना शुरू किया था परन्तु इसको उसके उत्तराधिकारी अस्तुतमिश ने पूर्ण करवाया । कुछ लोगों का मत है कि यह लाट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने वराहमिहिर के लिए बनवाई थी जिसमें बैठकर वह रात्रि को नक्षत्रो का निरीक्षण करता था ।
एक अन्य मतानुसार इस लाट को पृथ्वीराज ने अपनी बेटी के लिए बनवाया था जिस पर बैठकर मह प्रतिदिन यमुना नदी का दर्शन करती थी । इन मतों के समर्थक कहते हैं कि कुतुबुद्दीन से पहले यह लाट यहाँ पर थी । इसको उन दिनों त्रक्षत्र निरीक्षण स्तम्भ कहते थे । इसका फारसी अनुवाद कुतुब मीनार है ।
कुतुबुद्दीन के पूछने पर लोगों ने उसको फारसी में कहा यह कुतुब मीनार है जो बाद में कुतुब मीनार के नाम से प्रसिद्ध हो गया । यह मीनार 238 फुट ऊँची है । इसमें 378 सीढ़ियों है । इसकीं पाँच मजिलें हैं । प्रत्येक मंजिल पर छज्जा बाहर को निकला है जिस पर चढ़कर लोग इधर-उधर देखते थे । अब इस पर चढ़ना मना है ।
लौह स्तम्भ:
कुतुब मीनार से थोड़ा आगे बढ्कर एक टूटा-फूटा प्राचीन भवन दिखाई दिया जो अपने प्राचीन वैभव को प्रदर्शित कर रहा था । सामने ही एक लोहे का स्तम्भ खड़ा था । हमारे मार्ग-दर्शक-ने बताया कि यह स्तम्भ शायद चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने बनवाया था ।
यह उसकी विजयों का स्मारक है, इसे विष्णुध्वज कहा जाता था । यह जमीन से 23 फुट ऊपर है और साढ़े तीन फुट अन्दर । इसका भार छ: टन से अधिक है । इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस पर जंग नहीं लगता । हजारों वर्षो से यह ऐसा का ऐसा ही खड़ा है ।
योगमाया का मन्दिर:
यह भी एक ऐतिहासिक अवशेष है जिसके साथ ऐतिहासिक घटना जुड़ी हुई है । हमारे मार्ग-दर्शक ने बताया कि योगमाया का मन्दिर बड़ा ही प्राचीत मन्दिर है । कहा जाता है कि योगमाया कृष्ण की बहन थी । वह कृष्ण को बचाने के लिए पैदा हुई थी । इसी को कंस ने जमीन पर पटक कर मारा था ।
योगमाया के नाम पर ही दिल्ली का पुराना नाम योगिनीपुर था । इस मन्दिर का कई बार जीर्णोद्धार किया गया । वर्तमान मन्दिर को राजा सेढमल ने सन् 1807 में बनवाया था । फूल वालों की सैर के दिन जब पंखे निकलते हैं तो वे इस मन्दिर में भी आते हैं ।
फूल वालों की सैर हिन्द्व-मुस्लिम एकता व प्रेम का प्रतीक है । उस दिन यहाँ पर हिनू-मुसलमान सभी लोग बड़ी श्रद्धा से आते है ।
भूल-भुलैयाँ:
उसके बाद हम भूल-भुलैयाँ पहुँचे । यह भूल-भुलैयाँ अकबर की आय के बेटे अधमखाँ का मकबरा है । यह अठपहलुवा है । इसकी दीवार इतनी मोटी है कि इसके अन्दर ही जीना (सीढ़ी) चलता है । इस जीने के ऊपर-नीचे चढ़ने में आदमी चक्कर में पड़कर रास्ता भूल जाता है । इसीलिए इसको भूल-भुलैयाँ कहते हैं ।
जहाज महल:
महरौली के प्राचीन कस्बे की ओर एक प्राचीन महल है जिसके सामने एक तालाब है । जब तालाब में पानी भरा होता है उस समय यह महल जहाज के समान दिखाई देता है, इसलिए इसको जहाज महन कहते हैं । तालाब का निर्माण सन् 1029 में सम्राट अल्तुतमिश ने करवाया था ।
अलाउद्दीन ने इसके बीच में एक छतरी बनवाई थी जो आज तक सामने दिखाई देती है । उसके बाद अपने मार्ग-दर्शक को धन्यवाद देकर हम बस द्वारा पुन: घर को लौट आये ।
उपसंहार:
ऐतिहासिक अवशेष हमारे लिए बड़े महत्त्वपूर्ण होते हैं । ये अवशेष हमे भाषा में अपनी प्राचीन गरिमा को बताते है । एक कुशल ऐतिहासिक कला मर्मज्ञ इतिहासकार उनकी भाषा को समझता है और सुनता है इसलिए हमें इन अवशेषो को सुरक्षित रखना चाहिए ।
इनके कोई चिन