आपके विचार से शिक्षा नीति में बदलाि होने से छात्रों को क्या लाभ होगा? अपने विचार व्यक्ि कीजिए| 50 to 60 words in simple or basic hindi, it's a speaking activity for me, thank you!!!
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अगर आप छोटे बच्चे के माता-पिता हैं, तो आपको चिंता होगी कि क्या नई शिक्षा नीति के बाद भी आपको अपने बच्चे के नर्सरी में दाखिले के लिए माथापच्ची करनी होगी.
अगर आपके बच्चे 10वीं 12वीं में पढ़ने वाले हैं तो आपको चिंता होगी कि कॉलेज में दाखिले के लिए क्या 99 फ़ीसदी ही लाने होंगे?
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और अगर आपके बच्चे कॉलेज में पढ़ रहे हैं, तो आपको चिंता होगी नौकरी की?
क्या नई शिक्षा नीति से नौकरी में उनको सहूलियत मिलेगी?
देश की नई शिक्षा नीति में आम जनता ऐसे ही सवालों के जवाब ढूँढ रही है.
नई शिक्षा नीति क्या है?
सबसे पहले बात नई शिक्षा नीति की.
दरअसल ये एक पॉलिसी डाक्यूमेंट है, जिसमें सरकार का शिक्षा को लेकर आने वाले दिनों में विज़न क्या है, इसकी चर्चा है. ये शिक्षा के क्षेत्र में देश की दशा और दिशा तय करती है. जानकारों की राय में हर दस से पन्द्रह साल में ऐसी नीति बनाई जानी चाहिए, लेकिन इस बार बनते बनते 34 साल लग गए. नई शिक्षा नीति का वादा बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में भी किया था. अब तक तीन शिक्षा नीति देश को मिल चुकी है. इस नीति में कही गई बातें ना तो क़ानूनी बाध्यता हैं और ना ही तुरंत लागू होने वाली हैं.
इस बार नई शिक्षा नीति को लागू करने के लिए केन्द्र ने साल 2030 तक का लक्ष्य रखा गया है. चूंकि शिक्षा संविधान में समवर्ती सूची का विषय है, जिसमें राज्य और केन्द्र सरकार दोनों का अधिकार होता है, इसलिए राज्य सरकारें इसे पूरी तरह माने ये ज़रूरी नहीं है. जहाँ कहीं टकराव वाली स्थिति होती है, दोनों पक्षों को आम सहमति से इसे सुलझाने का सुझाव दिया गया है.
5+3+3+4 क्या है?
अब शुरुआत स्कूली शिक्षा में किए गए बदलाव से करते हैं. नई शिक्षा नीति में पहले जो 10+2 की पंरपरा थी, अब वो खत्म हो जाएगी. अब उसकी जगह सरकार 5+3+3+4 की बात कर रही है.
5+3+3+4 में 5 का मतलब है - तीन साल प्री-स्कूल के और क्लास 1 और 2 उसके बाद के 3 का मतलब है क्लास 3, 4 और 5 उसके बाद के 3 का मतलब है क्लास 6, 7 और 8 और आख़िर के 4 का मतलब है क्लास 9, 10, 11 और 12.
यानी अब बच्चे 6 साल की जगह 3 साल की उम्र में फ़ॉर्मल स्कूल में जाने लगेंगे. अब तक बच्चे 6 साल में पहली क्लास मे जाते थे, तो नई शिक्षा नीति लागू होने पर भी 6 साल में बच्चा पहली क्लास में ही होगा, लेकिन पहले के 3 साल भी फ़ॉर्मल एजुकेशन वाले ही होंगे. प्ले-स्कूल के शुरुआती साल भी अब स्कूली शिक्षा में जुड़ेंगे.
इसका मतलब ये कि अब राइट टू एजुकेशन का विस्तार होगा. पहले 6 साल से 14 साल के बच्चों के लिए आरटीई लागू किया गया था. अब 3 साल से 18 साल के बच्चों के लिए इसे लागू किया गया है.
ये फार्मूला सरकारी और प्राइवेट सभी स्कूलों पर लागू होगा.
3 लैंग्वेज फ़ॉर्मूला
इसके अलावा स्कूली शिक्षा में एक और महत्वपूर्ण बात है भाषा के स्तर पर. नई शिक्षा नीति में 3 लैंग्वेज फ़ॉर्मूले की बात की गई है, जिसमें कक्षा पाँच तक मातृ भाषा/ लोकल भाषा में पढ़ाई की बात की गई है.
साथ ही ये भी कहा गया है कि जहाँ संभव हो, वहाँ कक्षा 8 तक इसी प्रक्रिया को अपनाया जाए. संस्कृत भाषा के साथ तमिल, तेलुगू और कन्नड़ जैसी भारतीय भाषाओं में पढ़ाई पर भी ज़ोर दिया गया है.
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सेकेंड्री सेक्शन में स्कूल चाहे तो विदेशी भाषा भी विकल्प के तौर पर दे सकेंगे.
इसी को कुछ जानकार आरएसएस का एजेंडा बता रहे हैं. लोग ये भी पूछ रहे हैं कि दक्षिण भारत का बच्चा दिल्ली में आएगा तो वो हिंदी में पढ़ेगा, तो वो कैसे पढ़ेगा?
तमिलनाडु सरकार ने इसका विरोध किया है.
लेकिन 3 लैंग्वेज फ़ॉर्मूला में ये कहीं नहीं लिखा है कि ऐसा करना राज्यों सरकारों के लिए बाध्य होगा. ऐसा भी नहीं है कि बच्चे अंग्रेजी नहीं पढ़ पाएंगे. इसमें केवल ये बात है कि तीन भाषाओं में से दो भाषा भारतीय हो. जहाँ मातृ भाषा में पुस्तकें उपलब्ध नहीं है वहाँ मातृ भाषा में किताबें छापने का प्रस्ताव भी दिया गया है.
बोर्ड एक्ज़ाम
स्कूली शिक्षा में तीसरी बात बोर्ड परीक्षा में बदलाव का है. पिछले 10 सालों में बोर्ड एग्ज़ाम में कई बदलाव किए गए. कभी 10वीं की परीक्षा को वैकल्पिक किया गया, कभी नबंर के बजाए ग्रेड्स की बात की गई.
लेकिन अब परीक्षा के तरीक़े में बदलाव की बात नई शिक्षा नीति में की गई है. बोर्ड एग्जाम होंगे, और अब दो बार होंगे. लेकिन इनको पास करने के लिए कोचिंग की ज़रूरत नहीं होगी.
परीक्षा का स्वरूप बदल कर अब छात्रों की 'क्षमताओं का आकलना' किया जाएगा, ना कि उनके यादाश्त का. केंद्र की दलील है कि नंबरों का दवाब इससे ख़त्म होगा. 2022-23 वाले सत्र से इस बदलाव को लागू करने की मंशा है.
इन बोर्ड परीक्षाओं के अतिरिक्त राज्य सरकारें कक्षा 3, 5 और 8 में भी परीक्षाएँ लेंगी. इन परीक्षाओं को करवाने के लिए गाइड लाइन बनाने का काम नई एजेंसी को सौंपा जाएगा, जो शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत ही काम करेगी.
IIT और NEET की परीक्षा
नई शिक्षा नीति में अंडर ग्रेजुएट कोर्स में दाख़िले के लिए नेशनल टेस्टिंग एजेंसी से परीक्षा कराने की बात कही गई है.
साथ ही रीजनल स्तर पर, राज्य स्तर पर और राष्ट्रीय स्तर पर ओलंपियाड परीक्षाएं कराने के बारे में भी कहा गया है. आईआईटी में प्रवेश के लिए इन परीक्षाओं को आधार बना कर छात्रों को दाख़िला देने की बात की गई है.
उसी तरह से मेडिकल कोर्स में आमूलचूल बदलाव की बात की गई है. कोई भी नई यूनिवर्सिटी केवल एक विषय विशेष की पढ़ाई के लिए आगे से नहीं बनाई जाएगी. 2030 तक सभी यूनिवर्सिटी में अलग अलग स्ट्रीम की पढ़ाई एक साथ कराई जाएगी. मेडिकल की पढ़ाई के लिए अलग एक्रिडेशन पॉलिसी बनाने की बात नई शिक्षा नीति में कही गई