आपके वालिद...?' मियाँ नसीरुद्दीन की आँखें लमहा-भर को किसी भट्ठी में गुम हो गईं। लगा गहरी सोच में हैं-फिर सिर हिलाया-क्या आँखों के आगे चेहरा जिंदा हो गया! हाँ हमारे वालिद साहिब मशहूर थे मियाँ बरकत शाही नानबाई गढ्यावाले के नाम से और उनके वालिद यानी कि हमारे दादा साहिब थे आला नानबाई मियाँ कल्लन।'
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आपके वालिद...?'
मियाँ नसीरुद्दीन की आँखें लमहा-भर को किसी भट्ठी में गुम हो गईं। लगा गहरी सोच में हैं-फिर सिर हिलाया-क्या आँखों के आगे चेहरा जिंदा हो गया!
हाँ हमारे वालिद साहिब मशहूर थे, मियाँ बरकत शाही नानबाई गढ्यावाले के नाम से और उनके वालिद यानी कि हमारे दादा साहिब थे आला नानबाई मियाँ कल्लन।'
➲ यह वार्तालाप कृष्णा सोबती द्वारा लिखित शब्द चित्र ‘मियां नसीरुद्दीन’ से लिया गया है। जब लेखिका जामा मस्जिद इलाके में के मटिया महल के गढ़ैय्या मोहल्ले में स्थित मियां नसरुद्दीन की दुकान पर उनसे वार्तालाप कर रही थी, तब लेखिका ने वार्तालाप के क्रम में मियां नसीरुद्दीन से उनके पिता के विषय में पूछा और फिर मियां नसरुद्दीन ने अपने पिता के बारे में बताना शुरू किया कि उनके पिता अपने जमाने में नानबाई बनाने के लिये बेहद मशूहर थे। नानबाई बनाना उनका खानदानी पेशा था।
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