आपके विदयालय में एक मेले का आयोजन किया गया था। यह किस अवसर पर, किस उद्देश्य से किया गया था ? उसके लिए आपने क्या-क्या तैयारियाँ की ? आपने और आपके मित्रों ने एवम शिक्षकों ने उसमें क्या सहयोग दिया था ? इन बिंदुओं को आधार बनाकर एक प्रस्ताव विस्तार से लिखिए।
Answers
Explanation:
hey good afternoon have a fantastic day
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❛ मेरे विद्यालय में मेले का आयोजन ❞
आज का युग विज्ञापन व प्रदर्शन का युग है। इस भौतिकवादी युग में नगरों तथा ग्रामों में तरह-तरह के मेलों का आयोजन किया जा रहा है। ऐसे ही आयोजन विद्यालयों व महाविद्यालयों में किए जा रहे हैं। ऐसी ही कई प्रदर्शनियाँ हमारे नगर में भी लगती रहती हैं जिनका संबंध पुस्तकों, विज्ञान के उपकरणों, वस्त्रों आदि से होता है। मैं गत रविवार अपने विद्यालय में आयोजित ऐसे ही एक भव्य मेले में गया। मुझे बताया गया था कि वह प्रदर्शनी जैसे स्वरूप का मेला अब तक की सबसे बड़ी प्रदर्शनी है जिसमें देशविदेश की कई बड़ी-बड़ी कंपनियाँ और निर्माता अपने उत्पादों को प्रदर्शित कर रहे हैं।
इसी बात को ध्यान में रखकर मैं अपने पिताजी के साथ उस ‘एपेक्स ट्रेड फेयर’ नामक त्रि-दिवसीय मेले में चला गया।। मेला सचमुच विशाल एवं भव्य था। विद्यालय के सभागार के अतिरिक्त बाहर के पंडालों में भी शामियाने के नीचे स्टाल लगे हुए थे। हम पहले हॉल में गए। वहाँ सबसे पहले मोबाइल कंपनियों के स्टाल थे। नोकिया, सैमसंग, एयरटेल, वोडाफ़ोन, पिंग, रिलायंस आदि मुख्य कंपनियाँ थीं। सभी ने छूट और पैकेज की सूचनाएं लगा रखी थीं। सेल्समैन आगंतुकों को लुभाने के लिए अपनी-अपनी बातें रख रहे थे।
आगे बढ़े तो इलैक्ट्रोनिक का सामान दिखाई दिया जिनमें मुख्यतः माइक्रोवेव, एल.सी.डी., डी.वी.डी., कार स्टीरियो, कार टी.वी., ब्लैंडर, मिक्सर, ग्राईंडर, जूसर, वैक्यूम क्लीनर, इलैक्ट्रिक चिमनी, हेयर कटर, हेयर ड्रायर, गीज़र, हीटर, कन्वैक्टर, एयर कंडीशनर आदि अनेकानेक उत्पादों से जुड़ी कंपनियों के प्रतिनिधि अपना-अपना उत्पाद गर्व सहित प्रदर्शित कर रहे थे।
इन मेलों का मुख्य लाभ यही है कि हम इनमें प्रदर्शन (फ्री डैमो) की क्रिया भी देख सकते हैं कि कौन-सा उत्पाद कैसे संचालित होगा और उसका परिणाम क्या सामने आएगा। अगले स्टालों पर गृह-सज्जा का सामान प्रदर्शित किया गया था। उसमें पर्दो, कालीनों और फानूसों की अधिकता थी। हॉल से बाहर आए तो हमें सबसे पहले खाद्य-पदार्थों और पेय-पदार्थों के स्टाल दिखाई दिए। इनमें नमकीन, भुजिया, बिस्कुट, चॉकलेट, पापड़ी, अचार, चटनी, जैम, कैंडी, स्कवैश, रस, मुरब्बे, सवैयां आदि से जुड़े तरह-तरह के ब्रांड प्रदर्शित किए गए थे। चखने के लिए कटोरों में नमकीन रखे गए थे। पेय-पदार्थों को भी चखकर देखा जा रहा था।
मेले के अगले चरण में वस्त्रों को दिखाया जा रहा था। इन स्टालों पर पुरुषों और स्त्रियों के वस्त्र प्रदर्शित किए गए थे। पोशाकों पर उनके नियत दाम भी लिखे गए थे। साड़ियों की तो भरमार थी। उसके आगे आभूषणों और साज-सज्जा (मेक-अप) के सामान प्रदर्शित किए थे। इन उत्पादों में महिलाओं की अधिक रुचि होती है। यही कारण था कि इस कोने में स्त्रियाँ ही स्त्रियाँ दिखाई दे रही थीं।
इसके साथ ही हस्तशिल्प, हथकरघा और कुटीर उद्योगों द्वारा बना सामान दिखाया जा रहा था। हाथ के बने खिलौनों की खूब बिक्री हो रही थी। कुछ लोग हाथ से बुने थैले, स्वैटर और मैट खरीद रहे थे। सबके बाद मूर्तियों तथा तैल चित्रों को दिखाने का प्रबंध था। यह विलासित का कोना था क्योंकि उनमें से कोई भी वस्तु पाँच हजार रुपयों से कम मूल्य की नहीं थी। वहाँ इक्का-दुक्का लोग थे।
इस प्रकार हमने मेले में जाकर न केवल उत्पादों के दर्शन किए परंतु उनके उपयोग की विधियों की भी जानकारी ली। खरीद के नाम पर हमने दो लखनवी कुर्ते, एक थैला, दो प्रकार के आचार तथा एक छोटा-सा लकड़ी का खिलौना खरीदा। सचमुच इस प्रकार के मेले आज के विज्ञापन तथा प्रतिस्पर्धा के युग में विशेष महत्त्व रखते हैं। मेले के साथ-साथ हमारे विद्यालय का नाम भी सुर्खियों में आ गया।
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