आपने अपना जन्मदिन कैसे मनाया ? उस दिन के बारे में डायरी लिखिए ।
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26/1/2020,
मेरी जन्मतिथि न केवल मेरे लिये अपितु पूरे स्वतन्त्र भारत के लिये महत्वपूर्ण है । मैं पन्द्रह वर्ष पूर्व 26 जनवरी को पैदा हुआ था । मेरे पिताजी ने मेरे जन्म का सही समय लिख लिया था और एक योग्य पंडित द्वारा मेरी कुण्डली बनवायी । पर वह केवल माता पिताजी के लिये महत्वपूर्ण है ।
मुझे तो अपने जन्म की तिथि से यही लेना-देना है जो मुझे एक दिन के लिये महत्वपूर्ण बना देती है । मैं निमन्त्रण पत्र भेजने, कीमती भेटें सम्भालने में और बैठक को सजाने में अपना समय व्यतीत करता हूँ । मैंने कुछ चीजें पूरी तरह अपनी बहन पर छोड़ दी हैं । उदाहरण स्वरूप निमंत्रण पत्रों की साज सज्जा एवं पते को सुंदर तरीके से लिखना ।
मैं पार्टी में अपने मित्रों को भी आमंत्रित करता हूँ । मेरे पिताजी की मेरा जन्म दिन मनाने के विषय में अलग ही धारणा है । पिछले वर्ष वह मुझे एक अनाथालय में ले गये थे एवं मेरे नाम से सौ रुपये का दान उनकी कल्याण निधि में जमा करवाया ।
इस वर्ष उनका मुझे अन्धविद्यालय ले जाने का विचार है । मेरे मित्रों ने सायं पांच बजे आना प्रारम्भ किया । मैंने सुसज्जित बैठक में उनका गर्मजोशी से स्वागत किया । उनके बैठने की व्यवस्था की । वह मेरे लिये उपहार लाये जो बहुत सुन्दर एव रंगीन रैपर में पैक थे ।
बम्बई में रहने वाले मेरे अंकल मुझे एक जीनस अथवा एक कीमती पेन का जोड़ा भेजते हैं । इस वर्ष भी मुझे उनसे एक अच्छे से उपहार की उम्मीद है । जब मेरे सभी मित्र आ गये । मेरी माँ उनके लिये केक लेकर बैठक में आयीं । उसके एक तरफ मोमबत्तियाँ जल रही थी ।
मेरे मित्रों ने सामूहिक रूप से जन्म दिन का बधाई गीत गाना प्रारम्भ किया तो मैंने एक ही फूंक से सभी मोमबत्तियाँ बुझा दी एवं एक चाकू की सहायता से केक को छोटे टुकड़ों में काटा । सभी को केक खिलाया गया । प्रत्येक व्यक्ति ने मुझे आर्शीवाद एवं शुभकामनायें दी ।
तत्पश्चात् कुछ चटपटा नाश्ता परोसा गया । मेरी बहन ने सब कार्य सुचारू रूप से करने में मेरी माँ की सहायता की । बाद में हमने मिलकर उपहारों को खोला । हम सभी खेल खेलने के लिये तैयार हो गये । प्रत्येक खेल रोमांचक था । हम सबने खूब हंसी मजाक किये । किन्तु घिरते हुये अंधेरे ने हमें चेतावनी दी कि हमें यह सब यहीं समाप्त करना होगा ।
दूर से आये मित्रों ने विदा लेनी प्रारम्भ की । अब पिताजी के साथ मेरा किसी अनाथ-आश्रम, अन्धविद्यालय अथवा शहर के किसी अस्पताल में जाने का समय था । वह चाहते थे कि मैं प्रसन्नता के क्षणों में भी इन जरूरतमंद लोगों को याद रखूँ एवं उनके चेहरे पर मुस्कान लाने का कारण बनूँ ।