aapane Budhi Prithvi ka Dukh path Bada Prithvi ka Dukh Dur karne mein aap kya yogdan Denge
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सपनों में चमकती कुल्हाड़ियों के भय से
पेड़ों की चीत्कार?
कुल्हाड़ियों के वार सहते
किसी पेड़ की हिलती टहनियों में
दिखाई पड़े हैं तुम्हें
बचाव के लिए पुकारते हज़ारों-हज़ार हाथ?
क्या होती है, तुम्हारे भीतर धमस
कटकर गिरता है जब कोई पेड़ धरती पर?
सुना है कभी
रात के सन्नाटे में अंधेेरे से मुंह ढांप
किस कदर रोती हैं नदियां
इस घाट अपने कपड़े और मवेशियां धोते
सोचा है कभी कि उस घाट
पी रहा होगा कोई प्यासा पानी
या कोई स्त्री चढ़ा रही होगी किसी देवता को अर्घ्य?
कभी महसूस किया कि किस कदर दहलता है
मौन समाधि लिए बैठा पहाड़ का सीना
विस्फोट से टूटकर जब छिटकता दूर तक कोई पत्थर?
सुनाई पड़ती है कभी भरी दुपहरिया में
हथौड़ों की चोट से टूटकर बिखरते पत्थरों की चीख
खून की उल्टियां करते
देखा है कभी हवा को, अपने घर के पिछवाड़े?
थोड़ा-सा वक़्त चुराकर बतियाता है कभी
कभी शिकायत न करने वाली
गुमसुम बूढ़ी पृथ्वी से उसका दुख?
अगर नहीं, तो क्षमा करना!
मुझे तुम्हारे आदमी होने पर सन्देह है
हमने ‘बूढ़ी पृथ्वी का दुख’ पाठ पढ़ा।
इस पाठ को पढ़कर हमें अपनी पृथ्वी के दुखों का ज्ञान हुआ। हमें पता चला हम मनुष्य इस पृथ्वी को कितना दुख देने में लगे हुए हैं। इस पाठ को पढ़कर हमें यह सीख मिली कि हमें अपने पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। अपनी बूढ़ी पृथ्वी के दुखों को दूर करने के लिए हम पृथ्वी पर उपस्थित प्रकृति और उसके पर्यावरण को संरक्षित करें तो हम अपनी बूढ़ी पृथ्वी के दुखों को काफी हद तक कर सकते हैं। इसके लिए हम निम्नलिखित उपाय आजमा सकते हैं।
हम अधिक से अधिक पेड़ लगायें और पेड़ों को कटने से बचायें। धरती पर उपस्थित हरियाली को नष्ट ना करें। हम अपनी नदियों को प्रदूषित ना करें, उनमें व्यर्थ का कचरा और कल-कारखानों का अपविष्ट न बहायें।
हम अपनी हवा को भी प्रदूषित होने से बचायें। वाहनों और फैक्ट्रियों के जहरीले धुएं से हवा को प्रदूषित होने से बचाने के लिए हम वाहनों का कम से कम उपयोग करें और कारखानों ऐसे उपायों का प्रयोग करें, जिससे प्रदूषण कम हो। हम धरती पर कंक्रीट के जंगलों को बनाने की अपनी प्रवृत्ति पर अंकुश लगाएं और पहाड़ों, जमीन आदि को उसके प्राकृतिक स्वरूप में ही रहने दें।
हमारी पृथ्वी पर जो भी प्राकृतिक तत्व हैं, हम उनको उनके मूल स्वरूप में रहने दें और उनके साथ छेड़छाड़ ना करें। प्राकृतिक जीवन जीयें और विकास की अंधी दौड़ पर थोड़ी रोक लगा कर जीवन की प्राकृतिकता का आनंद लें तो हम अपनी बूढ़ी पृथ्वी के दुख को काफी हद तक दूर कर सकते हैं।