Hindi, asked by swastika242, 1 day ago

आपत्सु मित्रं जानीयाद् युद्धे शूरमृणे शुचिम्। भार्यां क्षीणेषु वित्तेषु व्यसनेषु च बान्धवान् । Please Translate this Sanskrit *Shlok*.​

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Answered by 12Ayush
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हमारे आप्त जनों की परीक्षा कब-कब करनी चाहिए यह प्रस्तुत श्लोक में बताया है |

जब आपत्ति आती है, तब मित्र की परीक्षा की जाती है | जब युद्ध होता है, तब असली शूर की परीक्षा की जाती है | जब कर्ज होता है, तब एक इमानदार की परीक्षा की जाती है | जब घर का धन ( पैसा ) समाप्त होता है, तब पत्नी की परीक्षा की जाती है | और जब व्यसन ( संकट ) आता है, तब अपनों की परीक्षा की जाती है |

Explanation:

आपत्सु मित्रं जानीयाद् इस का अर्थ यह है की आपत्तीयों में अपने मित्र को पहचानना चाहिए | जो आपको आपके संकट में मदद करेगा, वही आपका सच्चा मित्र होगा |

युध्दे शूरम् इस का अर्थ है की युद्ध में ही एक शूर को जाना जा सकता है | कोई ऐसे ही शूरता दिखाता है, लेकिन वक्त आने पर चुहे की तरह कायर बन जाता है | इसलिए, जो भी युद्ध में अपनी शूरता का प्रमाण देगा, वही असली शूर होगा |

ऋणे शुचिम् इस का अर्थ यह है की कोई व्यक्ती इमानदार है यह कर्ज में जानना चाहिए | अगर वह व्यक्ती कर्ज में आपको धोखा नहीं देगा, तब वो व्यक्ती सच में इमानदार होगा |

भार्यां क्षीणेषु वित्तेषु इस का अर्थ यह है की पत्नी को सब धन समाप्त होने पर जानना चाहिए | अगर धन ना हो और उस परिस्थिती में भी पत्नी घर संभाल सके, तो वही असली पत्नी है ( वह पत्नी का धर्म अच्छे से निभा रही है ) |

व्यसनेषु च बान्धवान् इस का अर्थ यह है की अपनों को ( रिश्तेदारों को ) व्यसनों में जानना चाहिए | जब आप पे बहुत बडा संकट आए और आपके रिश्तेदार बिना किसी कारण के आपको मदद करें, तो वही आपके सच्चे रिश्तेदार है ( वो रिश्तेदार का धर्म अच्छे से निभा रहे है ) |

प्रस्तुत श्लोक का सरलार्थ यह है :

मित्र की परीक्षा आपत्ती में, शूर की परीक्षा युद्ध में, इमानदार की परीक्षा कर्ज में, पत्नी की परीक्षा धन समाप्त होने पर और रिश्तेदारों की परीक्षा व्यसनों में ( बडे संकटों में ) करनी चाहिए |

Answered by ManishKumarPankaj
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जब आपत्ति आती है, तब मित्र की परीक्षा की जाती है । जब युद्ध होता है, तब असली शूर की परीक्षा की जाती है । जब कर्ज होता है, तब एक इमानदार की परीक्षा की जाती है। जब घर का धन (पैसा) समाप्त होता है, तब पत्नी की परीक्षा की जाती है। और जब व्यसन (संकट ) आता है, तब अपनों की परीक्षा की जाती है।

Explanation:

आपत्सु मित्रं जानीयाद् इस का अर्थ यह है की आपत्तीयों में अपने मित्र को पहचानना चाहिए। जो आपको आपके संकट में मदद करेगा, वही आपका सच्चा मित्र होगा।

युध्दे शूरम् इस का अर्थ है की युद्ध में ही एक शूर को जाना जा सकता है। कोई ऐसे ही शूरता दिखाता है, लेकिन वक्त आने पर चुहे की तरह कायर बन जाता है। इसलिए, जो भी युद्ध में अपनी शूरता का प्रमाण देगा, वही असली शूर होगा ।

ऋणे शुचिम् इस का अर्थ यह है की कोई व्यक्ती इमानदार है यह कर्ज में जानना चाहिए। अगर वह व्यक्ती कर्ज में आपको धोखा नहीं देगा, तब वो व्यक्ती सच में इमानदार होगा।

भार्यां क्षीणेषु वित्तेषु इस का अर्थ यह है की पत्नी को सब धन समाप्त होने पर जानना चाहिए। अगर धन ना हो और उस परिस्थिती में भी पत्नी घर संभाल सके, तो वही असली पत्नी है ( वह पत्नी का धर्म अच्छे से निभा रही है) ।

व्यसनेषु च बान्धवान् इस का अर्थ यह है की अपनों को ( रिश्तेदारों को ) व्यसनों में जानना चाहिए। जब आप पे बहुत बडा संकट आए और आपके रिश्तेदार बिना किसी कारण के आपको मदद करें, तो वही आपके सच्चे रिश्तेदार है ( वो रिश्तेदार का धर्म अच्छे से निभा रहे है)।

प्रस्तुत श्लोक का सरलार्थ यह है :

मित्र की परीक्षा आपत्ती में, शूर की परीक्षा युद्ध में, इमानदार की परीक्षा कर्ज में, पत्नी की परीक्षा धन समाप्त होने पर और रिश्तेदारों की परीक्षा व्यसनों में (बडे संकटों में ) करनी चाहिए।

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