aapke jiwan m sharad ritu kya maine rkhti h vistar se likhiye
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ऋतु की समाप्ति के पश्चात् शरद् ऋतु का आगमन होता है । पंचवटी में श्रीराम-लक्ष्मण से शरदागम का वर्णन करते हुए कहते हैं:
वर्षा विगत सरद रितु आई । लछिमन देखहू परम सुहाई ।। फूले कास सकल महि छाई । जनु बरसा कृत प्रगट बुढ़ाई ।।
आश्विन और कार्तिक शरद् ऋतु के दो मास होते हैं । इस ऋतु में सूर्य पिंगल और उष्ण होता है । आकाश निर्मल और कहीं-कहीं श्वेत वर्ण मेघ युक्त होता है । सरोवर कमलों सहित हंसों से शोभायमान होते हैं । सूखी भूमि चीटियों से भर जाती है ।
वर्षा काल में भूमिस्थ जल में अनेक प्रकार के खनिज पदार्थ मिल जाते हैं । मल, मूत्र, कीट, कृमि उनका मल-मूत्र सब कुछ जल में आकर मिल जाता है । इसे निर्विष करने के लिए सूर्य की जीवाणु नाशक प्रखर किरणें, चन्द्रमा की अमृतमय किरणें और हवा आवश्यक है तथा यह सब शरद् ऋतु में प्राप्त होती है ।
शरद् ऋतु में रातें ठण्डी और सुहावनी हो जाती है । वन कुमुद और मालती के फूलों से सुशोभित होते हैं । अनगिनत तारों की चमक और चन्द्रमा की चांदनी से रात्रि का अन्धकार दूर हो जाता है । संसार ऐसा लगता है । मानों दूध के सागर में स्नान कर रहा हो ।
शरद् ऋतु के सुहावने मौसम में ऐसा कोई सरोवर नहीं है जिस में सुन्दर कमल न हों, ऐसा कोई पंकज नहीं है जिस पर भ्रमर नहीं बैठा हो, ऐसा कोई भौंरा नहीं है जो गूंज न रहा हो । ऐसी कोई भनभनाहट और पक्षियों का कलरव नहीं जो मन न हर रहा हो । कहने का तात्पर्य यह है कि शरद् ऋतु में कमल खिले हुए है, कमलों पर बैठे हुए भौरों की रसीली गूंज मनुष्यों के चित्त को चुरा रही हैं ।
इस ऋतु में दिन और रात का तापमान प्राय: सामान्य होता है । आलस्य के स्थान पर शरीर में चुस्ती और कार्य करने का उत्साह बढ़ जाता है । फल और सब्जियों की बहार आ जाती है । विभिन्न पदार्थ खाने को दिल करता है । चेहरे पर खुशी और जीवन में प्रसन्नता आ जाती है ।
शरद् ऋतु अपने साथ कई त्यौहार लाती है । जैसे- दशहरा और दीपावली । इसमें लोग मिठाइयां और नाना प्रकार के व्यंजन खाते और खिलाते हैं । खुशियां मनाते हुए इस त्यौहार को विदा करते हैं । इतने में कार्तिक पूर्णिमा का स्नान आता है । इसके साथ ही शरद् ऋतु की समाप्ति, हेमन्त के आगमन को सूचित करती है ।
कविवर ‘सेनापति’ शरद् ऋतु के समय पड़ने वाली सुहावनी और मीठी-मीठी ठण्ड का वर्णन करते हुए लिखते हैं:
कातिक की राति थोरी थोरी सियराति, सेनापित है सुहाति सुखी जीवन के गन हैं । फूल हैं कुमुद, फूली मालती सघन वन, फलि रहे तारे मानो मोती अनगन हैं
वर्षा विगत सरद रितु आई । लछिमन देखहू परम सुहाई ।। फूले कास सकल महि छाई । जनु बरसा कृत प्रगट बुढ़ाई ।।
आश्विन और कार्तिक शरद् ऋतु के दो मास होते हैं । इस ऋतु में सूर्य पिंगल और उष्ण होता है । आकाश निर्मल और कहीं-कहीं श्वेत वर्ण मेघ युक्त होता है । सरोवर कमलों सहित हंसों से शोभायमान होते हैं । सूखी भूमि चीटियों से भर जाती है ।
वर्षा काल में भूमिस्थ जल में अनेक प्रकार के खनिज पदार्थ मिल जाते हैं । मल, मूत्र, कीट, कृमि उनका मल-मूत्र सब कुछ जल में आकर मिल जाता है । इसे निर्विष करने के लिए सूर्य की जीवाणु नाशक प्रखर किरणें, चन्द्रमा की अमृतमय किरणें और हवा आवश्यक है तथा यह सब शरद् ऋतु में प्राप्त होती है ।
शरद् ऋतु में रातें ठण्डी और सुहावनी हो जाती है । वन कुमुद और मालती के फूलों से सुशोभित होते हैं । अनगिनत तारों की चमक और चन्द्रमा की चांदनी से रात्रि का अन्धकार दूर हो जाता है । संसार ऐसा लगता है । मानों दूध के सागर में स्नान कर रहा हो ।
शरद् ऋतु के सुहावने मौसम में ऐसा कोई सरोवर नहीं है जिस में सुन्दर कमल न हों, ऐसा कोई पंकज नहीं है जिस पर भ्रमर नहीं बैठा हो, ऐसा कोई भौंरा नहीं है जो गूंज न रहा हो । ऐसी कोई भनभनाहट और पक्षियों का कलरव नहीं जो मन न हर रहा हो । कहने का तात्पर्य यह है कि शरद् ऋतु में कमल खिले हुए है, कमलों पर बैठे हुए भौरों की रसीली गूंज मनुष्यों के चित्त को चुरा रही हैं ।
इस ऋतु में दिन और रात का तापमान प्राय: सामान्य होता है । आलस्य के स्थान पर शरीर में चुस्ती और कार्य करने का उत्साह बढ़ जाता है । फल और सब्जियों की बहार आ जाती है । विभिन्न पदार्थ खाने को दिल करता है । चेहरे पर खुशी और जीवन में प्रसन्नता आ जाती है ।
शरद् ऋतु अपने साथ कई त्यौहार लाती है । जैसे- दशहरा और दीपावली । इसमें लोग मिठाइयां और नाना प्रकार के व्यंजन खाते और खिलाते हैं । खुशियां मनाते हुए इस त्यौहार को विदा करते हैं । इतने में कार्तिक पूर्णिमा का स्नान आता है । इसके साथ ही शरद् ऋतु की समाप्ति, हेमन्त के आगमन को सूचित करती है ।
कविवर ‘सेनापति’ शरद् ऋतु के समय पड़ने वाली सुहावनी और मीठी-मीठी ठण्ड का वर्णन करते हुए लिखते हैं:
कातिक की राति थोरी थोरी सियराति, सेनापित है सुहाति सुखी जीवन के गन हैं । फूल हैं कुमुद, फूली मालती सघन वन, फलि रहे तारे मानो मोती अनगन हैं
Anonymous:
thnku soo much
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