aapke vichar Mein Bazar Ke Logon Ka kharbuje Bechne wali ko gridhana ki Drishti se dekhna uchit hai
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नहीं ये बिल्कुल ही गलत भाव है वो भी एक इंसान है उनकी एक मजबूरी है कि वे खरबूजे बेच रहे है हमे उन्हें घृणा की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए ।
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नहीं ये बिलकुल ही गलत बात है हमे ऐसा नहीं करना चाहिए वो भी इंसान ही है उनकी वो मजबूरी ही कि वे खरबूजे बेच रहे है ।
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