Aapne apne jeevan ke vishay mein kya socha hai? Aap kya banna chaahte hai, aapne uddeshya ki praapt ke liye aap kaun se prayaas karenge?
varundhawanfan:
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संसार में कई प्रकार के व्यवसाय हैं, उद्योग-धन्धे हैं, नौकरियाँ और कार्य-व्यापार हैं । उनमें से कई बड़े ही मानवीय माने जाते हैं । यों तो सभी का सम्बन्ध मनुष्य के साथ ही हुआ करता है; पर कुछ कार्य-व्यापार इस तरह के भी हैं कि जिन की स्थिति मानवीय दृष्टि से बड़ी ही संवेदनशील हुआ करती है । उसका सीधा सश्व-य मनुष्य की भावनाओं, मनुष्य के प्राणों और सारे जीवन के साथ हुआ करता है । डॉक्टर का धन्धा कुछ इसी प्रकार का ही पवित्र, मानवीय संवेदनाओं से युक्त प्राण-दान और जीवन-रक्षा की दृष्टि से ईश्वर के बाद दूसरा, बल्कि कुछ लोगों की दृष्टि. में ईश्वर के समान ही हुआ करता है ।
मेरे विचार में ईश्वर तो केवल जन्म देकर संसार में भेज दिया करता है । उसके बाद मनुष्य-जीवन की रक्षा का सारा उत्तरदायित्व वह डॉक्टरों के हाथ में सौंप दिया करता है । इस कारण अक्सर मेरे मन-मस्तिष्क में यह प्रश्न उठा करता है कि-यदि मैं डाक्टर होता, तो? यह सच है कि डॉक्टर का व्यवसाय बड़ा ही पवित्र हुआ करता है । पहले तो यहाँ तक कहा और माना जाता था कि डॉक्टर का पेशा केवल सेवा करने के लिए हुआ करता है, कमाई करने के लिए नहीं! मैंने ऐसे बनई डॉक्टरों की कहानियाँ सुन रखी हैं जिन्होंने मानव-सेवा में सारा जीवन खुद भूखे-प्यासे रह कर बिता दिया, पर किसी बेचारे मरीज को इसलिए नहीं मरने दिया कि उसके पास फीस देने या दवाई खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं ।
यदि मैं डॉक्टर होता, तो ऐसा ही करने की कोशिश करता । किसी भी आदमी को बिना इलाज, बिना दवाई मरने नहीं देता । मैंने यह भी सुन रखा है कि कुछ ऐसे डॉक्टर भी हुए हैं, जिन्होंने अपने बाप- दादा से प्राप्त की गई सारी सम्पत्ति लोगों की सेवा-सहायता में खर्च कर दी । यदि मैं बाप- दादा से प्राप्त की गई सम्पत्ति वाला डॉक्टर होता, तो एक-एक पैसा आम आदमियों की सेवा- सहायता में ही खर्च करता, इसमें शक नहीं ।
मैंने सुना और पड़ा है कि भारत के दूर-दराज के देहातों में डॉक्टरी-सेवा का बड़ा अभाव है, जब कि वहाँ तरह-तरह की बीमारियाँ फैलकर लोगों को आतंकित किये रहती है; क्योंकि पड़े -लिखे वास्तविक डॉक्टर वहाँ जाना नहीं चाहते, इस कारण वहाँ नीम हकीमों की बन आती है या फिर झाडू-फूँक करने वाले ओझा. लोग बीमारों का भी इलाज करते हैं । इस तरह नीम हकीम और ओझा बेचारे अनपढ़-अशिक्षित गुरीब देहातियों को उन्न बना कर दोनों हाथों से लूटा तो करते ही हैं, उनके प्राण लेने से भी बाजू नहीं आते और उनका कोई कुछ भी बिगाड़ नहीं पाता ।
यदि मैं डॉक्टर होता तो आवश्यकता पड़ने पर ऐसे ही दूर-दराज के देहातों में जाकर लोगों के प्राणों की तरह-तरह की बीमारियों से तो रक्षा करता ही; लोगों को ओझाओं, नीम-हकीमों और तरह-तरह के अन्धविश्वासों से छुटकारा दिलाने का प्रयत्न भी करता । मेरे विचार में अन्धविश्वास भी एक तरह के भयानक रोग ही हैं । इनसे लोगों को छुटकारा दिलाना भी एक बड़ा महत्त्वपूर्ण पुण्य कार्य ही है । यह ठीक है कि डॉक्टर भी आदमी होता हैं अन्य सभी लोगों के समान उसके मन में भी धन-सम्पत्ति जोड़ने जीवन की सभी तरह की सुविधाएँ पाने और जुटाने, भौतिक सुख भोगने की इच्छा हो सकती है ।
ISILIYE MAIN DOCTOR BANNA CHAHATI/TAHUN
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