आर. एच. तन्त्र को समझाओ ?
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Explanation:
=> यह रक्त तन्त्र रक्ताणुओं (Blood carpuscles) की सतह पर Rh एण्टीजन की उपस्थिति एवं अनुपस्थिति पर आधारित है। इसकी खोज लैण्डस्टीनर एवं बीनर द्वारा की गयी थी।
=> एक अन्य प्रतिजन/एण्टीजन Rh होता है जो लगभग 80% मनुष्यों में पाया जाता हैं। यह Rh एण्टीजन रीसस बन्दर में पाए जाने वाले एण्टीजन के समान होता है। ऐसे व्यक्ति को जिसमें Rh एण्टीजन होता हैं, Rh सहित (Rh + ve) और जिसमें यह नहीं होता है, उसे Rh हीन (Rh – ve) कहते हैं। यदि Rh – ve व्यक्ति के रक्त को Rh +ve के साथ मिलाया जाता है, तो व्यक्तियों में Rh प्रतिजन विरुद्ध विशेष प्रतिरक्षी बन जाती है। अतः रक्त आदान-प्रदान करने से पहले Rh समूह को मिलाना आवश्यक होता है।
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यह रक्त तन्त्र रक्ताणुओं (Blood carpuscles) की सतह पर Rh एण्टीजन की उपस्थिति एवं अनुपस्थिति पर आधारित है। इसकी खोज लैण्डस्टीनर एवं बीनर द्वारा की गयी थी।
एक अन्य प्रतिजन/एण्टीजन Rh होता है जो लगभग 80% मनुष्यों में पाया जाता हैं। यह Rh एण्टीजन रीसस बन्दर में पाए जाने वाले एण्टीजन के समान होता है। ऐसे व्यक्ति को जिसमें Rh एण्टीजन होता हैं, Rh सहित (Rh + ve) और जिसमें यह नहीं होता है, उसे Rh हीन (Rh – ve) कहते हैं। यदि Rh – ve व्यक्ति के रक्त को Rh +ve के साथ मिलाया जाता है, तो व्यक्तियों में Rh प्रतिजन विरुद्ध विशेष प्रतिरक्षी बन जाती है। अतः रक्त आदान-प्रदान करने से पहले Rh समूह को मिलाना आवश्यक होता है।