आरा
(ख) अँखिया हरि-दरसन की भूखी।
कैसे रहैं, रूपरसराची ये बतियाँ सुनि रूखी ॥
अवधि गनत इकटक मग जोयत तब एती नहिं झूखी।
अब इन जोग-संदेसन ऊधौ अति अकुलानी दूखी ॥
वारक वह मुख फेरि दिखाओं, दुहि पय पियत
पतूखी॥
सूर सिकत हरि नाव चलायो ये सरिता हैं सूखी ॥
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ह्श्स्म्फ्द्म्स्स्फ्द्ःग्फ्क्ष्। द्य्द्क्क्स्झ्र्स्श्रद्ग्द्द्ज़्क्ष्क्ष्,त्र्रेत्र्त्स्ज़्क्ष्य्र्स्.क्ष्छ्य्ताज़्व्ल्ह्ल्द्
Explanation:
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