Hindi, asked by BTSarmysaranghe, 8 months ago

आराम करो कविता का सार
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Answered by bhatiamona
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आराम करो कविता का सार

“आराम करो” कविता गोपाल प्रसाद व्यास द्वारा लिखित एक व्यंग्यात्मक कविता है।

इस कविता का सार इस प्रकार है कि एक मित्र दूसरे मित्र से बोलता है कि मित्र कौन सी चक्की का आटा खाते हो, जो दिन-ब-दिन मोटे हुए जा रहे हो। इस तरह बैठे-बैठे खाने पीने से क्या होगा। अपनी अक्ल चलाओ और कुछ कर्म करो और अब कर्म करके जगत में अपना नाम करो। तब पहला मित्र बोलता है, अरे जाने दो काम करने में क्या रखा है। ज्यादा दौड़ने भागने से क्या होगा। आराम करने में जो मजा है वह और कहाँ। आराम करने से ना तो कोई तपेदिक जैसी बीमारी होती है और ना ही  दुबलेपन की बीमारी होती है। आराम शब्द में तो राम है जो सीधे हमें ईश्वर से ही जोड़ देता है। इसलिए इस जीवन का सच्चा आनंद लेना है तो आराम करो।

फिर भी यदि कुछ करना ही है, तो घर में बैठे-बैठे बड़ी-बड़ी बातें करो। काम करने में क्या रखा है. जो मजा बात बनाने में है, होंठ हिलाने में जो मजा है वो मजा हाथ हिलाने में नहीं। जो मजा मूर्ख कहलाने में है, वह बुद्धिमान कहलाने में नहीं। इसलिए मैं तो बुद्धिमान लोगों के पास कम ही जाता हूँ।

मैं बाहर ज्यादा नहीं घूमता शाम होने से पहले ही घर आ जाता हूँ, जो मिल जाता है, चुपचाप खा लेता हूँ और आराम करता हूँ। मेरी गीता अलग है, इसमें लिखा है जो सच्चे योगी होते हैं वो कम से कम 12 घंटे आराम करते हैं। अदवायन की खाट पर सोने में जो मजा आता है, वह मजा स्वर्ग या मोक्ष में भी नहीं है। इसलिए मैं खाट पर बैठा-बैठा  दूसरों को उपदेश देता रहता हूँ। खाट खाट पर बैठे बैठे ही मुझे गीत सूझते हैं और मैंने उन्हें गुनगुनाता रहता हूँ और आराम करता रहता हूँ। इसीलिए मैं कहता हूं मेरा अनुभव यह है कि अगर करना है कुछ काम तो खाट बिछा लो आंगन में और कर लो आराम।

Answered by afrinkhatun2008a
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Explanation:

प्रस्तुत कविता में किस प्रकार की मानसिकता वाले लोगों का वर्णन

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