English, asked by infodevendrakr, 4 months ago

आर्टिकल ऑन अतिथि देवो भावा इन 120 वर्ड्स​

Answers

Answered by snehalshinde01234
4

 \huge \mid{ \underline{ \overline{ \underline{ \overline\pink{\bold{ \: \: AnSwEr \: \: } }}} }}\mid..

अतिथि देवो भव का अर्थ होता है कि मेहमान देवता के समान होते हैं। हमें उनका आदर सत्कार करना चाहिए। प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में अतिथि को भगवान का रूप माना जाता है और उनका पूर्ण सम्मान किया जाता है। माना जाता है कि किसी मेहमान के रूप में भगवान ही हमारे घर आते हैं। घर आने वाले अतिथि हमारे रिश्तेदार, सगे संबंधी, पड़ोसी और दोस्त भी हो सकते हैं। उनके आने पर हम उनकी सेवा देवता की तरह करते हैं। उनके खान पान से लेकर उनके रहने तक की सब व्यवस्था अच्छे से की जाती है।

कुछ लोगों का मानना है कि अतिथि तो अच्छे भाग्यों वाले के घर ही आते हैं। मेहमान अपने साथ ढेर सारी खुशियाँ भी लेकर आते हैं। अतिथि का कभी भी निरादर नहीं करना चाहिए क्योंकि उनका निरादर भगवान के अपमान के समान है। अतिथि पर हँसने से उनका श्राप लगता है। अतिथि भाव का भूखा होता है न कि संपत्ति का। वह हमारे घर थोड़े समय के लिए ही आते हैं इसलिए उन्हें संतुष्ट रखने में हमें कोई कमी नहीं छोड़नी चाहिए। अतिथि का सम्मान यानि कि भगवान का सम्मान करना है। अतिथि को हमेशा प्रसन्न रखे

श्रीमद भगवत गीता में अतिथि देवो भव: का मतलब;

श्लोक

मातृदेवो भव ‌। पितृदेवो भव । आचार्य देवो भव ।

अतिथिदेवो भव । यानयनवधानि कर्माणि,

तानी सेवितवयानि, ना इतरानी ।,

यान्यस्माक सूचीरितानी, तानी त्वयोपास्थानी,नो इतराणि ।

श्लोक का अर्थ

माता देवता के समान पूजनीय हो । पिता देवता के समान पूजनीय हो । आचार्य देवता के समान आदरणीय हों । अतिथि (जिसके आने की कोई तिथि ना हो ) देवता के समान सम्मानीय हो । जितने निर्दोष उत्तम कर्म है, वे सेवन करने चाहिए । दूसरे, पाप कर्म या दुष्कर्म नहीं करने चाहिए । जितने हमारे शुभ आचरण है, तुझे वे धारण करने चाहिए ।

Similar questions