आर्थोपोडा संघ आर्थिक दृष्टि से लाभकारी एवं हानिकारक किस प्रकार से होता है? समझाइये।
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आर्थों (Artho) का अर्थ है संधियुक्त तथा पोडा (poda) को अर्थ होता है उपांग अर्थात् इस संघ में आने वाले जन्तुओं के उपांग संधियुक्त होते हैं। यह जन्तु जगत का सबसे बड़ा संघ है। इस संघ के प्राणी सभी प्रकार के आवासों में पाए जाते हैं।
इस संघ की स्थापना 1845 में वाँन सीबोल्ड (Von Siebold) ने की थी। मुख्य लक्षण (Main Characteristics)
इस संघ के सदस्य सभी प्रकार के आवासों में निवास करते हैं। ये समुद्रीय जल, स्वच्छ जल, स्थलीय, वायवीय, परजीवी आदि हैं।
इस संघ के जन्तु त्रिस्तरीय (triploblastic), द्विपार्श्व सममित (bilateral symmetry) होते हैं।
इनमें काइटिनी क्यूटिकल को बाह्य कंकाल पाया जाता है जो समय-समय पर नवीनीकृत किया जाता है।
शरीर तीन भागों में विभक्त होता है- सिर (Head), वक्ष (Thorax) व उदर (Abdomen)। कुछ जन्तुओं में सिर व वक्ष के जुड़ने से सिरोवक्ष (Cephalothorex) का निर्माण हो जाता है।
इनमें सन्धियुक्त उपांग (jointed legs) पाये जाते हैं। ये विभिन्न कार्यों के सम्पादन हेतु अनुकूलित होते हैं।
इनमें वास्तविक देहगुहा पाई जाती है। अधिकांशतः एक तरल से भरी रुधिर गुहा या हीमोसील (Haemocoel) होती है।
पेशी तंत्र विकसित मांसपेशियां रेखित (Striped) प्रकार की होती हैं जो शीघ्र संकुचन करने में सक्षम होती हैं।
संघ के सदस्यों में मेटामेरिक खण्डीभवन (Metameric segmentation) पाया जाता है।
इनमें पूर्ण विकसित आहारनाल पाई जाती है। अर्थात् पाचन के लिए पूर्ण विकसित । इनमें मुखांग (Mouth parts) पाये जाते हैं जो भिन्न-भिन्न प्रकार के पोषण हेतु अनुकूलित होते हैं।
परिसंचरण तंत्र (Circulatory) खुला (open) प्रकार का होता है। पृष्ठ भाग में हृदय, धमनियां व रक्त पात्र (Blood Sinus) पाये जाते हैं। रक्त रंगहीन होता है परन्तु कुछ जीवों में हीमोसाइनिन वर्णक के कारण रक्त नीला (Blue) होता है।
श्वसन क्रिया सामान्य शरीर की सतह, गिलों (Gills), श्वसन नलियों (Trachea) एवं पुस्तक फुफ्फुसों (Book Lungs) द्वारा होता है।
इनमें उत्सर्जन के लिए ग्रीन ग्रंथियां (Green glands), कक्ष ग्रंथियां (coxal glands) या मैलपीगी नलिकाएं (malpigh tubules) पाई जाती हैं।
इनमें तंत्रिका तंत्र में एक पृष्ठ तंत्रिका वलय और एक दो अधर तंत्रिका रज्जु होता है।
इनमें संवेदी अंगों में श्रृंगिकाएं सरल नेत्र या नेत्रक (ocelli) संयुक्त नेत्र (compound eyes), रसायनग्राही और स्पर्शग्राही होते हैं। सन्तुलनपुटी (स्टेटोसिस्ट) उपस्थित ।
श्वसन के लिए जलीय सदस्यों में जल-क्लोम (gills) स्थलीय में वायु नलिकाएं (tracheae) या बुक-लंग्स (book-lungs) । कुछ में श्वसन देहभित्ति से विसरण (diffusion) द्वारा होता है।
इसे संघ के सदस्य एकलिंगी (unisexual) होते हैं। इसमें लैंगिक द्विरूपता (sexual dimorphism) पाई जाती है।
अधिकांशतया आन्तरिक निषेचन (Internal fertilization) किया जाता है।
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आर्थों (Artho) का अर्थ है संधियुक्त तथा पोडा (poda) को अर्थ होता है उपांग अर्थात् इस संघ में आने वाले जन्तुओं के उपांग संधियुक्त होते हैं। यह जन्तु जगत का सबसे बड़ा संघ है। इस संघ के प्राणी सभी प्रकार के आवासों में पाए जाते हैं।
इस संघ की स्थापना 1845 में वाँन सीबोल्ड (Von Siebold) ने की थी। मुख्य लक्षण (Main Characteristics)
इस संघ के सदस्य सभी प्रकार के आवासों में निवास करते हैं। ये समुद्रीय जल, स्वच्छ जल, स्थलीय, वायवीय, परजीवी आदि हैं।
इस संघ के जन्तु त्रिस्तरीय (triploblastic), द्विपार्श्व सममित (bilateral symmetry) होते हैं।
इनमें काइटिनी क्यूटिकल को बाह्य कंकाल पाया जाता है जो समय-समय पर नवीनीकृत किया जाता है।
शरीर तीन भागों में विभक्त होता है- सिर (Head), वक्ष (Thorax) व उदर (Abdomen)। कुछ जन्तुओं में सिर व वक्ष के जुड़ने से सिरोवक्ष (Cephalothorex) का निर्माण हो जाता है।
इनमें सन्धियुक्त उपांग (jointed legs) पाये जाते हैं। ये विभिन्न कार्यों के सम्पादन हेतु अनुकूलित होते हैं।
इनमें वास्तविक देहगुहा पाई जाती है। अधिकांशतः एक तरल से भरी रुधिर गुहा या हीमोसील (Haemocoel) होती है।
पेशी तंत्र विकसित मांसपेशियां रेखित (Striped) प्रकार की होती हैं जो शीघ्र संकुचन करने में सक्षम होती हैं।
संघ के सदस्यों में मेटामेरिक खण्डीभवन (Metameric segmentation) पाया जाता है।
इनमें पूर्ण विकसित आहारनाल पाई जाती है। अर्थात् पाचन के लिए पूर्ण विकसित । इनमें मुखांग (Mouth parts) पाये जाते हैं जो भिन्न-भिन्न प्रकार के पोषण हेतु अनुकूलित होते हैं।
परिसंचरण तंत्र (Circulatory) खुला (open) प्रकार का होता है। पृष्ठ भाग में हृदय, धमनियां व रक्त पात्र (Blood Sinus) पाये जाते हैं। रक्त रंगहीन होता है परन्तु कुछ जीवों में हीमोसाइनिन वर्णक के कारण रक्त नीला (Blue) होता है।
श्वसन क्रिया सामान्य शरीर की सतह, गिलों (Gills), श्वसन नलियों (Trachea) एवं पुस्तक फुफ्फुसों (Book Lungs) द्वारा होता है।
इनमें उत्सर्जन के लिए ग्रीन ग्रंथियां (Green glands), कक्ष ग्रंथियां (coxal glands) या मैलपीगी नलिकाएं (malpigh tubules) पाई जाती हैं।
इनमें तंत्रिका तंत्र में एक पृष्ठ तंत्रिका वलय और एक दो अधर तंत्रिका रज्जु होता है।
इनमें संवेदी अंगों में श्रृंगिकाएं सरल नेत्र या नेत्रक (ocelli) संयुक्त नेत्र (compound eyes), रसायनग्राही और स्पर्शग्राही होते हैं। सन्तुलनपुटी (स्टेटोसिस्ट) उपस्थित ।
श्वसन के लिए जलीय सदस्यों में जल-क्लोम (gills) स्थलीय में वायु नलिकाएं (tracheae) या बुक-लंग्स (book-lungs) । कुछ में श्वसन देहभित्ति से विसरण (diffusion) द्वारा होता है।
इसे संघ के सदस्य एकलिंगी (unisexual) होते हैं। इसमें लैंगिक द्विरूपता (sexual dimorphism) पाई जाती है।
अधिकांशतया आन्तरिक निषेचन (Internal fertilization) किया जाता है।
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