आर्य समाज के नियम किसके लिए हैं?
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आर्य समाज में शुद्ध वैदिक परम्परा में विश्वास करते थे तथा मूर्ति पूजा, अवतारवाद, बलि, झूठे कर्मकाण्ड व अंधविश्वासों को अस्वीकार करते थे। इसमें छुआछूत व जातिगत भेदभाव का विरोध किया तथा स्त्रियों व शूद्रों को भी यज्ञोपवीत धारण करने व वेद पढ़ने का अधिकार दिया था।
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आर्य समाज के नियमों का सार्वभौमिक रूप से पालन किया जा सकता था और लोगों का कोई विशेष संप्रदाय नहीं था जो पालन करता।
- आर्य समाज एक एकेश्वरवादी भारतीय हिंदू सुधार आंदोलन है जो वेदों के अचूक अधिकार में विश्वास के आधार पर मूल्यों और प्रथाओं को बढ़ावा देता है। समाज की स्थापना सन्यासी (तपस्वी) दयानंद सरस्वती ने 7 अप्रैल 1875 को की थी।
- आर्य समाज हिंदू धर्म में धर्मांतरण की शुरुआत करने वाला पहला हिंदू संगठन था। संगठन ने 1800 के दशक से भारत में नागरिक अधिकार आंदोलन के विकास की दिशा में भी काम किया है।
- आर्य समाज का उद्देश्य वेदों, सबसे पुराने हिंदू धर्मग्रंथों को प्रकट सत्य के रूप में फिर से स्थापित करना था। इसका अतिरिक्त उद्देश्य सभी मानव जाति के शारीरिक, आध्यात्मिक और सामाजिक कल्याण में सुधार करना था।
- महर्षि दयानंद सरस्वती ने शुरू में आर्य समाज के 10 बुनियादी मार्गदर्शक सिद्धांतों की शुरुआत की। ये सिद्धांत सार्वभौमिक हैं और केवल दयानंद के अनुयायियों के लिए नहीं हैं।
- आर्य समाज एक ईश्वर में विश्वास करता है, जिसे "ओम" द्वारा जाना जाता है, जो सर्वज्ञ, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान, सभी न्यायपूर्ण और आनंदमय, बुद्धिमान और दयालु का स्रोत है। ये सभी अलग-अलग नामों को दर्शाते हैं, एक पहलू ईश्वर, एक सार्वभौमिक सत्य है।
इसलिए, आर्य समाज के नियमों का सार्वभौमिक रूप से पालन किया जा सकता था और लोगों का कोई विशेष संप्रदाय नहीं था जो पालन करता।
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