आर्यभट्ट ने ग्रहण के विषय में अंधविश्वास को कैसे दूर किया था ?
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दुनिया में ऐसे लोग भी हैं जिनके लिए ग्रहण किसी ख़तरे का प्रतीक है- जैसे कि दुनिया के ख़ात्मे या भयंकर उथलपुथल की चेतावनी.
हिंदू मिथकों में इसे अमृतमंथन और राहु-केतु नामक दैत्यों की कहानी से जोड़ा जाता है और इससे जुड़े कई अंधविश्वास प्रचलित हैं.
ग्रहण सदा से इंसान को जितना अचंभित करता रहा है, उतना ही डराता भी रहा है. असल में, जब तक मनुष्य को ग्रहण की वजहों की सही जानकारी नहीं थी, उसने असमय सूरज को घेरती इस अंधेरी छाया को लेकर कई कल्पनाएं कीं, कई कहानियां गढ़ीं. 7वीं सदी के यूनानी कवि आर्कीलकस ने कहा था कि भरी दोपहर में अंधेरा छा गया और इस अनुभव के बाद अब उन्हें किसी भी बात पर अचरज नहीं होगा. मज़े की बात यह है कि आज जब हम ग्रहण के वैज्ञानिक कारण जानते हैं तब भी ग्रहण से जुड़ी ये कहानियां, ये विश्वास बरकरार हैं.
कैलिफोर्निया की ग्रिफिथ वेधशाला के निदेशक एडविन क्रप कहते हैं, 'सत्रहवीं सदी के अंतिम वर्षों तक भी अधिकांश लोगों को मालूम नहीं था कि ग्रहण क्यों होता है या तारे क्यों टूटते है. हालांकि आठवीं शताब्दी से ही खगोलशास्त्रियों को इनके वैज्ञानिक कारणों की जानकारी थी.'
क्रप के मुताबिक, 'जानकारी के इस अभाव की वजह थी- संचार और शिक्षा की कमी. जानकारी का प्रचार-प्रसार मुश्किल था जिसके कारण अंधविश्वास पनपते रहे.' वह कहते हैं, 'प्राचीन समय में मनुष्य की दिनचर्या कुदरत के नियमों के हिसाब से संचालित होती थी. इन नियमों में कोई भी फ़ेरबदल मनुष्य को बेचैन करने के लिए काफ़ी था.'