Hindi, asked by khushii35, 1 month ago

आरक्षण की समस्या ने भारतीय समाज के बीच कई दीवारें खड़ी कर दी हैं। इस समस्या के समाधान के लिए काका कालेलकर कमेटी, मंडल आयोग आदि का गठन किया गया किंतु अभी तक कोई समुचित समाधान नहीं हुआ है lआरक्षण आवश्यकता तथा समाधान पर अपने विचार लिखिए।​

Answers

Answered by sid240599
1

Answer:

डॉ0 शशि तिवारी

यूं तो भारत का संविधान जाति, धर्म, लिंग, भाषा के आधार पर किसी भी वर्ग में भेद नहीं करता। लेकिन आज वो सब कुछ हो रहा है जो नही होना चाहिये मसलन जाति, धर्म लिंग भाषा के आधार पर ही हमारे चतुर नेता आदमी-आदमी के बीच महिला-महिला के बीच खाई बढ़ाने की पुरजोर कोशिश में दिन रात जुटे हुए हैं। फिर बात चाहे दंगे भड़काने के आरोपों की हो, चुनाव में टिकिट बांटने की हो, या आरक्षण की हो। संविधान निर्माण बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर ने सपने में भी नहीं सोचा होगा जिन दबे कुचले लोगों को मुख्य धारा में लाने के लिए जो 10 वर्ष का संकल्प लिया था उसे आजीवन जारी रख भविष्य में लोग इसी के इर्द-गिर्द राजनीति करेंगे।

यूं तो सुप्रीम कोर्ट नौकरियों पदोन्नति में आरक्षण को ले एवं तय सीमा से ज्यादा आरक्षण को लें समय-समय पर राज्य सरकारों को हिदायत देता रहा है एवं आरक्षण के पुनः रिव्यू की बात कह चुका है ताकि केवल जरूरतमदों को इसका न केवल वास्तविक लाभ मिल सके बल्कि नेक नियत की मंशा भी पूरी हो स्वतंत्रता के पश्चात् आरक्षण बढ़ा ही है जबकि समय-समय पर परीक्षण कर इसको कम करना चाहिए था।

हाल ही में जाट समुदाय के लोगों के आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द करते हुए जाति आधारित आरक्षण ही मूलतः गलत है यदि केाई एक गलती लंबे समय से चलती आ रही इसका मतलब ये कतई नहीं है कि अब इसे नहीं सुधारा जा सकता।

आज आरक्षण एक प्रिव्लेज है जो आरक्षण की मलाई खा रहे हैं वे इस दायरे से निकलना नहीं चाहते और जो इस दायरे में नहीं आते वे केवल इससे जुड़ने के लिए गृहयुद्ध की स्थिति को निर्मित करने पर उतारू है।

आज आरक्षण प्राप्त एक अभिजात्य वर्ग है जिसमें सांसद, विधायक, आई.ए.एस. प्रोफेसर, इंजीनियर, डाॅक्टर एवं अन्य प्रशासनिक अधिकारियों एवं कर्मचारियों की लम्बी फौज है जो तीन पीढ़ियों से इस पर अपना हक जमाए बैठा है। 8 अगस्त 1930 को शोषित वर्ग के सम्मेलन में डाॅ. अम्बेडकर ने कहा था ‘‘हमें अपना रास्ता स्वयं बनाना होगा और स्वयं राजनीतिक शक्ति शोषितों की समस्या का निवारण नहीं हो सकती, उनका उद्धार समाज में उनका उचित स्थान पाने में निहित हैं उनको अपना बुरा रहने का बुरा तरीका बदलना होगा, उनको शिक्षित होना चाहिए।’’

बाबा साहेब ने इस वर्ग के लोगों को शिक्षित होने पर ज्यदा जौर दिया वनस्पत थ्योरी के सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले से फिर एक नई बहस सी छिड़ गई है। मसलन आरक्षण क्यों? किसे, कैसे? कब तक जातिगत आरक्षण के जगह जाति रहित आरक्षण कैसे हो, इस पर विधायिका को जाति धर्म, वर्ग से ऊपर उठ सोचना चाहिए।

केवल जाति कैसे आरक्षण का आधार हो सकती हैं? पिछड़ापन क्या जातिगत हैं? आज आरक्षण को ले सामान्य वर्ग अर्थात् खुला संवर्ग क्या इन्हें भारत में जीने का अधिकार नहीं हैं? क्या ये भारत के नागरिक नहीं हैं? क्या इनके हितों की रक्षा सरकार का दायित्व नहीं हैं? क्या वर्ग संघर्ष का सरकार इंतजार कर रही हंै? फिर क्यों नहीं जाति रहित आरक्षण पर सभी नेता राजनीतिक पाटियों में एका होता?

आज मायावती, पासवान, मुलायम सिंह यादव जैसे अन्य समृद्ध शक्तिशाली किस मायने में अन्य से कम है। इन जैसे लोग जो शक्तिशाली हैं, क्यों नहीं जाति रहित आरक्षण की आवाज बुलन्द करते?

निःसंदेह आज जाति आधारित आरक्षण समाज में द्वेष फैलाने का ही कार्य कर रहा है। यह स्थिति एवं परिस्थिति न तो समाज के लिए शुभ है और न ही सरकारों के लिए। होना तो यह चाहिए गरीब, वास्तविक पिछड़े दलित लोगों को शिक्षा फ्री कर देना चाहिए ताकि बाबा भीमराव अम्बेडकर की मंशा के अनुरूप ये शिक्षित हो न कि केवल आरक्षण की वैशाखी हो। इसमें सभी माननीय सांसद, विधायक, बुद्धजीवियों को मिलकर एक मुहीम चला। संविधान में आवश्यक संशोधन कर स्वस्थ्य जाति रहित समाज के निर्माण में महति भूमिका निभानी होगी।

-डाॅ. शशि तिवारी

(लेखिका सूचना मंत्र की संपादक हेैं)

लेखक के विषय में

डॉ0 शशि तिवारी

लेखिका सूचना मंत्र पत्रिका की संपादक हैं।

I hope it helps. Don't forget to mark me as the brainliest. I've not taken any credit for writing it. I've stated the name of the writer.

Similar questions