आरक्षण की समस्या पर अनुच्छेद
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मौलिक रूप से संविधान ने पहले ही से लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों को आरक्षण प्रदान किया है किन्तु यह व्यवस्था केवल दस वर्ष तक के लिये की गयी थी जहाँ नौकरियों आदि में आरक्षण का प्रश्न है तो यह बात स्पष्ट धारा 335 में कही गयी है कि अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के ...
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संविधान की धारा 16 के अनुसार सरकार आरक्षण के माध्यम से भी इन वर्गों का कल्याण कर सकती है । मौलिक रूप से संविधान ने पहले ही से लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों को आरक्षण प्रदान किया है किन्तु यह व्यवस्था केवल दस वर्ष तक के लिये की गयी थी जहाँ नौकरियों आदि में आरक्षण का प्रश्न है तो यह बात स्पष्ट धारा 335 में कही गयी है कि अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के नौकरियों में आरक्षण के दावे पर विचार किया जाना चाहिये किन्तु प्रशासनिक कुशलता के पहलू को भी ध्यान में रखा जाये ।
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति आयोग की स्थापना इसी सन्दर्भ में की गयी । 1993 में यह आरक्षण व्यवस्था अन्य पिछड़ों वर्गों के लिये लागू कर दी गयी । वास्तविकता यह कि ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ पिछड़े वर्ग के लोग अधिकाधिक संख्या में रहते हैं उनको मौलिक ढांचा न होने के कारण इसका लाभ नहीं मिल पाया ।
उड़ीसा, मध्य प्रदेश तथा बिहार के दूरस्थ इलाकों में तो लोगों को इस व्यवस्था के बारे में पता ही नहीं है, चूँकि ये वर्ग प्राथमिक शिक्षा तथा न्यूनतम रोजगार तक से वंचित है इसलिये ये आर्थिक रूप से और भी पिछड़े हो जाते ।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 50% से अधिक आरक्षण किसी भी परिस्थिति में नहीं दिया जा सकता है । यह हमारे समाज की विडम्बना ही है कि राजनैतिक पार्टी या आरक्षण को एक हथियार के रूप में वोट बैंक को मजबूत करने के लिये करती ।
हम देख चुके हैं किस तरह नब्बे के दशक में मण्डल आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद समाज बंट गया था तथा छात्र वर्ग किस प्रकार मानसिक पीड़ा के दौर से गुजरा था किन्तु सत्ता के लालच में हमारे राजनेता समाज को बांटने में जरा भी शर्म महसूस नहीं करते ।
इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अगर देश को आगे ले जाना है तो ये देश का हर वर्ग को विकसित करके तथा उसको विकास की प्रक्रिया का भाग बनाकर ही किया जा सकता है । इसके लिये आरक्षण के अतिरिक्त और दूसरे रास्ते भी खोजे जा सकते हैं ।
जैसे-उनके लिये अच्छे कोचिंग संस्थानों की स्थापना करके, आर्थिक रूप से पिछड़े छात्रों को वजीफा प्रदान करके तथा उन्हें प्रशिक्षित करके । किन्तु ऐसे कदमों से हमारी राजनैतिक पार्टियों को कोई लाभ नहीं होगा । क्योंकि उनका उद्देश्य पिछड़ों का उत्थान नहीं बल्कि अपना वोट बैंक तैयार करना है ।
आरक्षण उन क्षेत्रों में देने की बात समझ में आती जहाँ तकनीकी कुशलता की अधिक आवश्यकता नहीं होती है किन्तु मेडिकल जैसा क्षेत्र जहाँ जीवन-मृत्यु का प्रश्न सदैव बना रहता है ऐसे तकनीकी तथा विशेषज्ञता वाले क्षेत्र में मैरिट के बजाय आरक्षण के आधार पर चयन करना तथा नियुक्ति करना वास्तव में एक खतरनाक खेल खेलने के समान है । ईश्वर हमारे नेताओं को सद्बुद्धि तथा दूरदृष्टि प्रदान करे
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