आरक्षण के विपक्ष मेँ तर्क
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देश की सबसे बड़ी त्रासदी है आरक्षण! अयोग्य व्यक्ति जब ऊँचे पदो पर पहुँच जाते है तो ना समाज का भला होता है और ना ही देश का ! और सही बात तो यह है कि आरक्षण जैसी चीजें मूल जरूरतमंदों के पास तक तो पहुँच ही नही पाती ! बस कुछ मलाई खाने वाले लोग इसका फायदा उठाते है ! आरक्षण जैसी चीजें चाहे वो गरीबी उन्मूलन हो या सरकारी राशन कि दुकानें ! सब जेब भरने का धंधा है और कुछ नही ! 1950 में संविधान लिखा गया और आज तक आरक्षण लागू है ! बाबा साहब अंबेडकर ने भी इसे कुछ समय के लिए लागू किया था ! अंबेडकर एक बुद्धिमान व्यक्ति थे !
वो जानते थे कि ये आरक्षण बाद में नासूर बन सकता है इसलिए उन्होंने इसे कुछ वर्षो के लिए लागू किया था जिससे कुछ पिछड़े हुए लोग समान धारा में आ सके ! अंबेडकर ने ही इसे संविधान में हमेशा के लिए लागू क्यू नही किया? इसका जवाब तो हर किसी के पास अलग अलग होगा परन्तु सत्य यह है कि जिस तरह से शराबी को शराब कि लत लग जाती है इसी तरह आरक्षण भोगियों को इसकी लत लग गयीं है अब ये इसे चाह कर भी नही छोड़ सकते ! क्यूँकि बिना योग्यता के सबकुछ जो मिल जाता है तो पढने कि जरूरत ही कहा है? हर किसी को बहाना चाहिए होता है ! गलती से मै भी जाट हूँ और मेरे प्रदेश में जाटों को आरक्षण कि सुविधा प्राप्त है किन्तु ना तो मैंने कभी अपना जाति प्रमाण पत्र बनवाया और ना ही कभी आरक्षण कि सुविधा का लाभ उठाया क्यूँकि यह मेरे आत्मसम्मान के ठेस पहुँचाने वाला होता ! अगर मै योग्य हूँ तो मुझे कोई नही रोक सकता यही धारणा मेरे मन में रही ! और आज उस परमपिता परमेश्वर की कृपा से मै इस योग्य हो चुका हूँ बिना आरक्षण के अपने वांछित पद पर हूँ ! योग्यता ही किसी पद को पाने का आधार होना चाहिए आरक्षण नही ! अब ये लोग कहेंगे कि योग्यता के आधार पर जाति की वजह से इन्हे नौकरी नही मिलती चाहे योग्यता हो भी ! सरकारी संस्थानों में सब कुछ अब प्रतियोगी परीक्षा से होता है ! अगर जाति की वजह से नौकरी नही मिलती तो अंबेडकर इतने बड़े पद पर नही पहुँच पाते ! और गैरसरकारी संस्थानों में कौनसा आरक्षण है? वहा सब जाति के लोग काम करते है ! और कोई किसी कि जाति नही पूछता ! सब मिलकर खाना खाते है पार्टी करते है ! उनके बीच कभी जातिवाद की दीवार नही आती !
"अव्वल अल्ला नूर उपाया ,कुदरत के सब बन्दे I
एक नूर ते सब जग उपज्या ,कौन भले कौन मंडे I"
हम सभी बन्दे परमात्मा के एक नूर की देन हैं Iपरन्तु विभाजन के उपाय हमने स्वयं किये हैं I अंग्रेज भारत को विभाजित कर गए थे जिसका परिणाम हमें आजतक भुगतना पड रहा है
I स्वतंत्रता के इतने वर्ष बाद भी हमारे अपने ही नेता शिक्षा का अर्थ और उद्देश्य भुला कर उसे जाति के आधार पर भुगतना पद रहा है I स्वंत्रता के इतने वर्ष बाद भी हमारे अपने ही नेता शिक्षा का अर्थ और उद्देश्य भुलाकर उसे जाती के आधार पर विभाजित करना चाह रहे हैं Iमैं एक बात पूछना चाहती हूँ अपने मित्रों से कि किसी बौधिक दृष्टि से कमजोर बच्चे को उच्च शिक्षा संस्थानों में आरक्षण के कारण प्रवेश देकर हम किस प्रकार के भारत को विश्व के समक्ष प्रस्तुत करने की कामना कर रहे हैं I
आरक्षण का होना इस कारण भी निरर्थक होता है कि पिछले कई वर्षों से चली आ रही आरक्षण की नीति के चलते कुछ ख़ास परिवार सामान्य वर्ग से अधिक संपन्न हो गए हैं Iयह विडम्बना है कि नीति का लाभ भी इन्हें ही मिलेगा I शिक्षा संस्थानों में रंग ,लिंग,जाति,आदि का लोई महत्व नहीं होता है Iउन्हें तो चाहिए योग्यता I योग्यता की कोई जाति नहीं होती Iचाहे अमीर हो या गरीब सवर्ण हो या निम्न वर्ण विद्या के मंदिर में वही प्रवेश ले सकता है I
आवश्यकता है आरक्षण की नीति में सुधार करने की I आरक्षण आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्ग का होना चाहिए न की बौधिक रूप से कमजोर वर्ग का I जिसपर कमजोर ईंटो की नीव पर आलिशान इमारत खड़ी नहीं की जा सकती ठीक उसी प्रकार उच्च शिक्षा भी इसके अभाव में असंभव है I आरक्षण की यह नीति भेदभाव पैदा कर रही है I
अंत में मैं यही कहना चाहूंगी कि किसी भी अपाहिज व्यक्ति को दौड़ में शामिल करवाने के लिए सही व्यक्ति के पैर कटवाने कहाँ तक उचित है I