Hindi, asked by tinab1076, 11 months ago

AarakShan ke vipaksh

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Answered by vatsalTrivedi
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शिक्षा का लक्ष्य है व्यक्ति का बौद्धिक ,सामाजिक आर्थिक एवम आध्यात्मिक विकास ,अर्थात व्यक्ति का सर्वांगीण विकास |किसी भी देश का भविष्य उसके विद्यार्थियों के ज्ञान स्तर पर निर्भर करता है |राष्ट्र के उत्थान के लिए विश्व स्तर पर प्रति स्पर्धा के लिए केवल साक्षर नागरिक राष्ट्र का प्रति निधित्व नहीं कर सकता उसके लिए विज्ञान ,तकनीकी ,चिकित्कीय उच्च संस्थान करते हैं |हम मानते हैं कि शिक्षा पर सबका अधिकार हैं और होना भी चाहिए परन्तु उच्च शिक्षा संस्थानों में समान अधिकारों की दुहाई देकर किसी निम्न बोद्धिक स्तर के छात्र को केवल इसलिए स्थान देना कि वह समाज के एक विशिष्ट वर्ग से सम्बन्ध रखता है ,कहाँ तक उचित है |

“अव्वल अल्ला नूर उपाया ,कुदरत के सब बंदे |

एक नूर ते सब जग उपज्या ,कौन भले कौन मंदे |”

हम सभी बंदे परमात्माके एक नूर की देंन हैं परंतु विभाजन के उपाय हमने स्वयं किए हैं |अंग्रेज भारत को विभाजित कर गए थे जिसका परिणाम हमे आज तक भुगतना पड़ रहा है |स्वतंत्रता के इतने वर्ष बाद भी हमारे अपने ही नेता शिक्षा का अर्थ और उद्देश्य भुला कर उसे जाति के आधार पर विभाजित करना चाह रहे हैं |शिक्षा आज राजनैतिक तंत्र के निहित स्वार्थो की बलि चढ़ाई जा रही है |

अभी हमारे देश के कई परिवारों के वे आंशू भी नहीं सूख पाए हैं जो मंडल कमीशन की आग में सैकड़ों विद्द्यार्थियो के आत्मदाह के कारण बहे थे |अब सरकार नए बिल की आग सुलगाने में लग गई |वैश्वीकरण के जिस दौर से हम आज गुजर रहे हैं | इसमें हमें भारतीयों की योग्यता और ज्ञान के स्तर को विश्व के समक्ष पेश करते हैं |मैं अपने मित्रों से पूछना चाहती हूँ कि किसी बौद्धिक दृष्टि से कमजोर बच्चे को उच्च शिक्षा संस्थानों में आरक्षण के कारण प्रवेश देकर हम किस प्रकार के भारत को विश्व के समक्ष प्रस्तुत करने की कामना कर रहे हैं !

आरक्षण का होना इस कारण भी निरर्थक सिद्ध होता है कि पिछले कई वर्षों से चली आ रही आरक्षण की नीति के चलते कुछ खास परिवार सामान्य वर्ग से अधिक संपन्न हो गए हैं विडंवना यह है कि आरक्षण की नीति का लाभ भी इन्हें ही मिलेगा |शिक्षा संस्थानों में रंग ,लिंग ,जाति आदि का कोई महत्व नही होता ,उन्हें तो चाहिए योग्यता | योग्यता की कोई जाति नही होती | चाहे अमीर हो गरीव ,सवर्ण हो निम्न वर्ण ,विद्द्या के मंदिर में वही प्रवेश ले सकता है ,जो इसकी कसौटी पर खरा उतरे |

स्वतन्त्रता से अब तक सम्विधान में अनेक सुधार आ चुके हैं ,अब आवश्यकता है आरक्षण की नीति में सुधार करने की |आरक्षण आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्ग का होना चाहिए न कि बौद्धिक रूप से कमजोर वर्ग का |जिस प्रकार कमजोर ईंटो की नीव पर आलीशान इमारत खड़ी नहीं कीजा सकती ठीक उसी प्रकार उच्च शिक्षा भी इसके आभाव में असम्भव है |आरक्षण की यह नीति भेद भाव पैदा कर रही है | दरकार को चाहिए कि वह आर्थिक सहायता देकर पिछड़े वर्ग को आगे बढ़ाए .उन्हें सुविधाएँ दे जिससे वे सम्मान के साथ आगे बढ़ सकें |

अंत में ,मैं यही कहना चाहूंगी कि किसी अपाहिज व्यक्ति को दौड़ में शामिल करवाने के लिए सही व्यक्ति के पैर कटवाना कहाँ तक उचित है |

समाप्त

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