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सेंगान का एजरा मेरे दादाजी के जमाने मे ही तय हो गया था।
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दादाजी धूनीवाले की गिनती भारत के महान संतों में की जाती है। दादाजी धूनीवाले मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के एक छोटे-से गाँव निमावर (साईखेडा) में एक पेड़ से प्रकट हुए थ| इसके बाद दादाजी महाराज ने साईखेडा में आकर अपनी अनेक लीलाएं की| यहाँ उन्होंने अपने हाथों से ही धूनी प्रज्ज्वलित की|जो कि आज भी नगर साईखेडा में दादाजी दरबार गढी में प्रज्ज्वलित है|इस धूनी के बारे में कहा जाता है कि दादाजी महाराज इस धूनी में चने आदि डालकर, उसे हीरे- मोती बना देते थे एवं कोई भी व्यक्ति उन्हें कितनी भी बेसकिमती चीज क्यों न देता हो वो उसे भी धूनी मैया में डाल देते थे| साईखेडा में अनेकों लीलाएं करके दादाजी महाराज साईखेडा से खंडवा आ गए | यहाँ भी दादाजी ने धूनी माई प्रज्ज्वलित की| दशकों तक अनंत लीलाएं करने के बाद श्री दादाजी महाराज ने सन् १९३० में नगर खंडवा में समाधि ले ली|आज दादाजी महाराज समूचे नगर खंडवा की बेसकिमती धरोहर एवं पहचान बन चुके हैं| खंडवा में दादाजी महाराज का लगभग १४ एकड़ में फैला विश्व प्रसिद्ध मंदिर है| जिसे दादाजी की समाधि के बाद उन्ही के परम् शिष्य श्री हरिहर भोले भगवान (छोटे दादाजी) ने बनवाया था| छोटे दादाजी के भी समाधि लेने के बाद आज वह मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित हो रहा है| इसी मंदिर परिसर में श्री छोटे दादाजी की समाधि भी है|
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