आसमान का आसरा छोड़ प्यारे,
उलटि देख घट अपन जी।
तुम आप में आप तहकीक करो,
तुम छोड़ो मन की कल्पना जी। ka bhavarth
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Leave the place of the skies dear,
Leave the place of the skies dear,See how bad you are
Leave the place of the skies dear,See how bad you areYou look into yourself,
Leave the place of the skies dear,See how bad you areYou look into yourself,You leave the imagination of the mind
MARK ME PLEASE.....
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यह उपर्युक्त पंक्तियाँ पूरक पठन से ली गयी है।
- यह दोहा कबीरदास जी द्वारा लिखित है जिसका अर्थ है की व्यक्ति को आसमान का सहारा नहीं लेना चाहिए। आसमान का अर्थ है इंद्र की ज्योति। जो लोग कहते है की शारारिक या मानसिक योग करने से शान्ति की प्राप्ति होती है, वह एक चरम सत्य नहीं है।
- सिर्फ ये ही साधना काफी नहीं है। कबीरदास जी को योग नहीं जमी। भगवान् को पाने का सिर्फ ये ही एक साधन नहीं है। ये सिर्फ बाहय है।कबीरदासजी चाहते है की लोग और सोचे और समझे और आगे बढे।
- अगर नहीं हो रहा तो ढोंग न करे। केवल सत्य की राह पर चलने से भी भगवान् मिल सकते है। हर ऐसी चीज़ जिससे एक इंसान को लगे की वह सही रास्ते पर चल रहा है उससे उसे मोक्ष प्राप्त हो जायेगा। ज्ञान के बिना योग व्यर्थ है। बिना ज्ञान के योग व्यर्थ है।
#SPJ3
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