आशा अमर धन कहानी की मूल संवेदना
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सूर्य प्रखर कि आशा प्रखर। ईश्वर अमर या आशा अमर कि किसी गाँव के पुराने घूरे पर एक किसान की झोंपड़ी थी। साठ-पैंसठ बीघा मगरेटी (पथरीली) ज़मीन! मारवाड़ में बादलों के भरोसे पानी की बजाय दूसरे-तीसरे बरस कर्रा या अकाल तो निश्चित टपकते हैं।
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