आशा अमर धन कहानी की मूल सवेंदना क्या है विस्तार से कीजीए
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Capital is a broad term for the financial assets of a business or an individual. Business capital may derive from the operations of the business or be raised from debt or equity financing.
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आशा अमर धन कहानी की मूल
संवेदना :
" आशा अमर धन " विजयदान देठा द्वारा लिखित कहानी है।
- इस कहानी में छोटे छोटे बच्चो के साथ सौतेली मां का अमानवीय व्यवहार व अत्याचार दर्शाया गया है।
- गांव में बारिश न पड़ने से किसान दुखी थे, फसल तो नहीं हुई , घर के कुएं तक सूख गए थे। ऐसे में किसान गांव छोड़ने पर मजबुर हुए।
- इस किसान व उसकी दूसरी पत्नी ने भी यह गांव छोड़ मालवा जाने का मन बनाया परन्तु सौतेली मां बच्चो को अपने साथ ले जाने को राज़ी न थी। वह जाने से पहले बच्चो को मारकर उनसे पीछा छुड़ाना चाहती थी।
- पत्नी के आगे पति की एक न चलती थी, सौतेली मां ने बिचारे तीन वर्ष की बच्ची व दो वर्ष के छोटे बालक की हत्या करने का निर्णय लिया। पति ने कहा , "बच्चो को मत मार, हम बाहर से कुंडी लगाकर चले चलते है, घर में अंदर भीख व प्यास से स्वयं ही मर जाएंगे।
- दोनों ने बच्चो को प्यार किया व यह कहकर विदा ली कि हम देहड़ी लेने जा रहे है , सांझ डले आ जाएंगे।
मां ने कहा ," छीके में राब और सोगरे रखे है,
मटकी में पानी रखा है, भूख लगे तो खा लेना ,
प्यास लगे तो पानी पी लेना।"
- सांझ हुई, मां व बापू नहीं आए, छोटे भाई ने पूछा सांझ हुई क्या , तब बहन ने कहा ," पगले, सांझ नहीं हुई है, सांझ तब होगी जब मां व बापू लौट आएंगे। " उसने भाई से कहा भूख लगे तो बताना, प्यास लगे तो मटकी में पानी पड़ा है। दोनों छोटे थे, छीका व मटकी ऊपर टंगे हुए थे दोनों का हाथ न पहुंचता।
- दोनों बच्चे सांझ की आशा लगाए भूखे प्यासे ही रहे, इस प्रकार एक वर्ष बीत गया, अब बारिश जोरो से पड़ रही थी, उनके मा व बापू भी लौट आए, उन्हें लगा कि बच्चे अंदर ही मर खप गए होंगे परंतु उन्हें बाहर बच्चो की आवाज़ सुनाई दी, मां ने कुंडी खोली बच्चे खुश होकर नाचने लगे कि मां व बापू आ गए परन्तु मां ने गुस्से में दोनों को तमाचे जड़ दिए व कहा कि अब तक मरे नहीं हो तुम दोनों।
- इस प्रकार पूरे वर्ष बच्चो को एक आशा ने जीवित रखा कि सांझ होगी तो उनके मां व बापू आएंगे परन्तु मां को दुखी देखकर वे छोटे व भूखे प्यासे बच्चे आहत हुए व उन्होंने वहीं दम तोड दिया।
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