Hindi, asked by parbatdheer1, 3 months ago

'आशा अमरधन' कहानी की मूल संवेदना क्या है विस्तार से बताइए​

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Answered by Anonymous
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Answer:

आशा।

मैं कृतज्ञ हूँ।

तुमने दिया मुझे

जीने का सम्बल।

मेरे दुर्दिन और घोर नैराश्य

के विकट पथ पर।

रेत के क्षणिक पगचिह्नों

की भांति।

बननते-बिगड़ते।

विक्षिप्त सा मैं

दौड़ता।

कटी पतंगों के पीछे।

जो ललचाती,हाथ न आती

आशा।

तुम अमरधन हो।

मैंने तुम्हें कभी खुद में

रिक्त न पाया।

निपट अकेलेपन मे भी।

और मेरी ढेर सारी हार मे भी

तुमने दिए मुझे

"उम्मीदों के तमगे।"

मेरी अमावश में अमरदीप जलाए।

मेरे आंसुओं को मेरी

ताकत मे ढाला तुमने।

रातों को सोने न दिया

मेरे दिवास्वप्नों के लिये।

मिटने न दिया,

चुनौतियों पर।

और सिखाया।

हर छोटी-बड़ी चोटों को सहना।

आशा।

तुम कुहासा में किरण बनी मेरे लिए।

उम्मीदों के घोंसलों में

कोशिशों के पंख देकर

मुझे परवाज दी तुमनें।

आशा।

मैं तुम्हारे उकसावे का प्रतिफल हूँ

आशा।

मैं कृतज्ञ हूँ

तुमने दिया मुझे

जीने का संबल।

- हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है।

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