'आश्रमों की व्यवस्था' के बारे में अपना विचार लिखिए।
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आश्रम व्यवस्था की प्रासंगिकता या महत्व
आश्रम व्यवस्था आयु के अनुसार कार्यों का एक वैज्ञानिक विभाजन प्रस्तुत करती है और इस प्रकार विभिन्न आयु के व्यक्ति से जो सर्वोत्तम सेवा प्राप्त की जा सकती है, उसे प्राप्त करने का प्रयास करती है। ब्रह्राचर्य जीवन ज्ञान और शक्ति के संचय का जीवन है।
ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास ये चार आश्रम कहलाते हैं। श्रम से जीवन को सफल बनाने के कारण आश्रम कहा जाता है। धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष इन चार पदार्थों की प्राप्ति के लिए इनचार आश्रमों का सेवन करना सब मनुष्यों को उचित है।
आश्रमव्यवस्था का उद्देश्य है-मनुष्य का सामाजिक नियमों में आबद्ध होकर अपनी आयु के अनुसार व्यक्तिगत उन्नति से सम्बद्ध कर्तव्यों का पालन करना। वस्तुतः प्रत्येक आश्रम की अपनी अलग स्थिति है, जिसकी प्राप्ति के लिए मनुष्य एक स्थल पर रहकर कार्य करता है। यह कार्य और क्रिया ही उसका श्रम है, जो आश्रम से आबद्ध रहता है।
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