आश्रम व्यवस्था क्या है आश्रम व्यवस्था की समाजशास्त्री महत्व की विवेचना कीजिए
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ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास ये चार आश्रम कहलाते हैं।श्रम से जीवन को सफल बनाने के कारण आश्रम कहा जाता है।
ब्रह्मचर्य-आश्रम(सुशिक्षाऔर सत्यविद्यादि गुणों को ग्रहण करने के लिए)
गृहस्थ-आश्रम (उत्तम गुणों के आचरण और श्रेष्ठ पदार्थों की उन्नति से सन्तानों की उत्पत्ति और सुशिक्षा)
वानप्रस्थ-आश्रम(ब्रह्म-उपासना, एकान्त-सेवन, विद्याफल विचार आदि कार्यों के लिए)
संन्यास-आश्रम(परब्रह्म, मोक्ष, परमानन्द को प्राप्त होने के लिए)
धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष इन चार पदार्थों की प्राप्ति के लिए इनचार आश्रमों का सेवन करना सब मनुष्यों को उचित है। इनमें से प्रथम ब्रह्मचर्याश्रम जो की सब आश्रमों का मूल है, उसके ठीक-ठीक सुधरने से सब आश्रम सुगम होतेऔर बिगडने से सब आश्रम नष्ट हो जाते हैं।
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