आशय रपषट कीजीए . दुष्ट दूत परमशर
मारे.
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इन पंक्तियों का आशय यह है कि दुष्ट व्यक्ति कभी भी दूसरे लोगों का भला नहीं कर सकते हर वक्त दूसरे लोगों की बुराई के लिए ही सोचते रहते हैं
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