आशय स्पष्ट कीजिए
1 ईन शिखरों की ऐसी माया, जैसा पृभात
संध्या वैसी
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यह ज़बान की चाबुक से पड़ी ऐसी मार थी, जिसके निशान शरीर पर नहीं धनराम के दिल पर लगे थे। एक बच्चे के मन ने इस बात को मान लिया कि वह पढ़ने के लायक नहीं है। यही कारण है मास्टर त्रिलोक सिंह के कथन को लेखक ने ज़बान के चाबुक कहा है।
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