आशय स्पष्ट कीजिए – “बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी-जवानी-जिंदगी सब कुछ होम देनेवालों पर भी हँसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढ़ूँढ़ती है।“
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बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी-जवानी-ज़िंदगी सब कुछ होम देनेवालों पर भी हँसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती है।"
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आश्य स्पष्ट कीजिए- बार-बार सोचने, क्या होगा उस कौम का जो
अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी, जवानी-जिंदगी सब कुछ होम कर
देने वालों पर भी हॅंसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढॅूढती है।
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