Hindi, asked by Janifa786, 5 months ago

आशय स्पष्ट कीजिए।

माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि।
मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तौ सुमिरन नाहिं ।।​

Answers

Answered by tanunagar21
10

Answer:

संत कबीर दास जी कहते हैं कि हाथ में माला फेरना और मात्र जिव्हा से भजन करना ईश्वर का सच्चा सुमिरन नहीं होता है यदि मन ही एकाग्र न हो।

Answered by Timesaver236
4

Explanation:

कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य हाथ में माला फेरते हुए जीभ से परमात्मा का नाम लेता है पर उसका मन दसों दिशाओं में भागता है। यह कोई भक्ति नहीं है।

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