आशय स्पष्ट कीजिए।
माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि।
मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तौ सुमिरन नाहिं ।।
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संत कबीर दास जी कहते हैं कि हाथ में माला फेरना और मात्र जिव्हा से भजन करना ईश्वर का सच्चा सुमिरन नहीं होता है यदि मन ही एकाग्र न हो।
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Explanation:
कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य हाथ में माला फेरते हुए जीभ से परमात्मा का नाम लेता है पर उसका मन दसों दिशाओं में भागता है। यह कोई भक्ति नहीं है।
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