Hindi, asked by vaibhav143v, 7 months ago

आशय स्पष्ट करें। :-
इस प्रकार का इतिहास लेखन अतीत के भारी बोझ से एक सीमा तक राहत दिलाता है

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Answered by sanjay047
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एक सामान्य व्यक्ति अतीत और इतिहास को अलगाकर नहीं देखता; अक्सर ही दोनों का प्रयोग समानार्थी की तरह कर डालता है। लेकिन इतिहास का एक सजग पाठक ऐसी गलती से भरसक बचेगा। अतीत एक समग्र अस्तित्व का नाम है जबकि इतिहास हमेशा एक टुकड़ा से ज्यादा कुछ नहीं होता। अतीत एक संपूर्णता का नाम है जबकि इतिहास महज एक चुना हुआ अंश जो इतिहासकार की सदिच्छा, आग्रह और परिवेश की झलक देता है। अतीत की घटनाएं मनुष्य के नियंत्रण से बाहर हैं और इतिहास सदैव हमारी मुट्ठी में, क्योंकि वह इतिहासकार की अपनी रचना है; उसका अपना विवेक बोलता है उसमें। इतिहास हमेशा इतिहासकार की रुचि का दास है और इतिहासकार ठीक उसी तरह से अतीत का। अतीत की घटनाओं में इतिहासकार कोई तब्दीली नहीं ला सकता, किंतु इतिहास की व्याख्या पर उसका पूरा अधिकार बनता है। प्रत्येक इतिहास के पीछे से इतिहासकार की आवाज आती है जिसे स्पष्टता के साथ सुना जा सकता है। ई. एच. कार ने एक बड़ी अच्छी बात कही थी कि इतिहास की किताब पढ़ते हुए उसके पीछे से आनेवाली ध्वनि को सुनो। अगर कुछ सुनाई न पड़े तो समझो या तो तुम बहरे हो या तुम्हारा इतिहासकार एकदम बोदा है। इन अर्थों में अतीत एक टेक्स्ट है और इतिहास उसका पाठ, उसकी व्याख्या। जैसे ही इतिहासकार बदलेगा, टेक्स्ट बदलेगा और बदलेगी उसकी व्याख्या। इसलिए अतीत भी कोई शाश्वत सत्य जैसी चीज न है। आपने भी गौर किया होगा जब एक इतिहासकार दूसरे इतिहासकार पर ऐतिहासिक तथ्यों की अनदेखी करने का आरोप लगाता है! क्या है तथ्यों की अनदेखी का मतलब ? शायद अतीत का निर्मित हो रहा एक नया पाठ जो पारंपरिक पाठ से भिन्नता लिए होता है।

इतिहास लगभग खंडों में प्रस्तुत किया जाता है; कुछ चीजें अक्सर इस बीच से गायब मिलती हैं। इसलिए इतिहास को एक बड़ी आरी कहा गया है जिसके कई दांत गायब हैं। एक इतिहासकार की यह व्यावहारिक समस्या भी हो सकती है कि समग्र अतीत को वह एक ही साथ प्रस्तुत नहीं कर सकता। यह एक ऐसी समस्या है जिसके लाभ भी हमें खूब मिलते हैं। जिस प्रकार मनुष्य के जीवन के कुछ पहलू अत्यंत गोपनीय हैं और कुछ पर हम पर्दा डाले रहते हैं, ठीक उसी तरह अतीत में कुछ वैसी घटनाएं घट चुकी रहती हैं जो हमारी पकड़ में नहीं होतीं और जिनकी चर्चा अक्सर बहुत प्रीतिकर और उपयोगी भी नहीं होती। यही वह बिंदु है जहां इतिहासकार का इतिहास-बोध महत्वपूर्ण हो उठता है। अतीत के किस हिस्से पर रोशनी डालनी है, इसकी समझ एक इतिहासकार के लिए आवश्यक शर्त की तरह है। अतीत का अपना एक मोह होता है जिसमें सम्मोहन की अजीब शक्ति है! इतिहासकार को अतीत के मोह से लड़ते हुए अपना इतिहास-बोध जाग्रत करना होता है। हालांकि मुक्तिबोध ने अपनी बात एक अन्य संदर्भ में रखी है लेकिन मुझे लिखते बल मिल रहा है कि भावना बच्चा है, अगर उसे आदमी नहीं बना सकते तो उसकी हत्या कर दो। एक इतिहासकार अतीत की घटनाओं से जितना ही टकराएगा, उसकी इतिहास दृष्टि उतनी ही पैनी होगी। बहुत सही समय है एक अंग्रेजी कथन याद करने का, ‘चाइल्ड इज दि फादर ऑफ मैन।’ मनुष्य बनने की प्रक्रिया में एक व्यक्ति को कितना लड़ना होता है अपने बचपने से! जो जितना लड़ पाता है उतना ही बड़ा मनुष्य बन पाता है।

इतिहास अतीत का अध्ययन करता है और हम इतिहास का अध्ययन करते हैं अपने वर्तमान को समझने एवं भविष्य की दिशा तय करने के लिए। अतीत का ज्ञान कोई जरूरी नहीं कि वर्तमान को समझने की कुंजी दे ही। कई बार अतीत हमारे लिए मुश्किलें खड़ी करता है। अतीत एक विशाल सागर की तरह है जिसे पार पाना आसान नहीं होता। इतिहासकार लेटन स्ट्रैची ने, अगर ई. एच. कार द्वारा उद्धृत शब्दों का सहारा लेकर कहूं तो ‘खास शरारती अंदाज’ में कहा हैः ‘इतिहासकार की पहली आवश्यकता है अज्ञान, अज्ञान जो उसके लिए चीजों को स्पष्ट और सरल बनाता है। जो चुनाव करता है और छोड़ता जाता है।’ शायद इसीलिए मध्य युग के बारे में हम पढ़ते हैं तो ऐसा लगता है कि मानों वहां सब कुछ धर्म से अनुप्राणित हो रहा हो। मध्यकालीन इतिहास के तथ्य के रूप में हमें जो कुछ मिलता है उसका चुनाव ऐसे इतिहासकारों की ऐसी पीढ़ियों द्वारा किया गया था जिनके लिए धर्म का सिद्धांत और व्यवहार एक पेशा था। इसलिए उन्होंने इसे अत्यंत महत्वपूर्ण माना और इससे संबंधित प्रायः हर चीज लिख लिखे गए। इसके अतिरिक्त जो दूसरी चीजें थीं उन्हें बहुत कम छुआ। अगर अतीत की मानें तो मध्ययुगीन समाज की धार्मिक तस्वीर पर हमें विश्वास करना होगा लेकिन हमारा इतिहासकार यहां अज्ञान का सहारा लेगा और मनुष्य के दूसरे महत्वपूर्ण कार्य-व्यापारों की खोज की तरफ प्रवृत्त होगा। लेकिन इसके लिए जगह बहुत कम बचती है क्योंकि इतिहासकारों की अनेक व्यतीत पीढ़ियों के मृत हाथों ने, अज्ञात लेखकों तथा तिथिविदों ने हमारे अतीत का सांचा पूर्व-निश्चित तरीके से गढ़ लिया है, जिसके खिलाफ किसी सुनवाई की कोई संभावना नहीं है। मध्ययुगीन मनुष्य की यह धार्मिक तस्वीर सच्ची हो या झूठी, तोड़ी नहीं जा सकती। उसके बारे में आज जो भी तथ्य हमें प्राप्त हैं, हमारे लिए उसका चुनाव बहुत पहले ऐसे लोगों द्वारा किया गया जो उनमें विश्वास रखते थे और चाहते थे कि दूसरे भी उनमें विश्वास करें। यहीं एक इतिहासकार अतीत के बेजान हाथों में पड़कर विवश और लाचार हो जाता है क्योंकि तथ्य का एक बहुत बड़ा भाग, जिसमें शायद विरोधी प्रमाण मिलता, नष्ट हो चुका है और जिसे पुनः कभी पाया नहीं जा सकता। अतीत को इतिहास के निर्मम हाथों में लाचार होते देख ही इतिहासकार बैरेकलो ने कहा होगा, ‘हम जो इतिहास पढ़ते हैं-हालांकि वह तथ्यों पर आधारित है, ठीक-ठीक कहा जाए तो एकदम यथातथ्य नहीं है बल्कि स्वीकृत फैसलों का एक सिलसिला है।’

Answered by gp1212692
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