Hindi, asked by gagan9118, 1 year ago

आशय स्पष्ट करें-
" मै तुम्हारा वेश हूँ, तुम्हारी वृत्ति हूँ
मुझे खोकर तुम अपना अर्थ खो बैठोगे ?"

Answers

Answered by Banjeet1141
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Answer:

यह पद्यांश कविता "मेरे बिना तुम प्रभु" से ली गई है इस कविता के लेखक है रेनर मरिया रिल्के |

प्रस्तुत पद्यांश कवि ने भक्त को भगवान की अस्मिता माना है । भगवान वास्तविक स्वर भक्त में है । भक्त भगवान का सब कुछ है । भगवान का रूप , वेश , रंग , कार्य सब भक्त में निहित है । भक्त के माध्यम से ही भगवान को जाना जा सकता है , उनके अस्तित्व की अनुभूति किया जा सकता है ।

            कवि कहता है कि हे भगवन मेरा अस्तित्व ही तुम्हारी पहचान है । मैं नहीं रहूँगा तो तुम्हारी पहचान भी नहीं होगी । अर्थात् भक्त से अलग रहकर , भक्त को खोकर भगवान अपना अर्थ , अपना मतलब , अपनी पहचान खो देंगे । भक्त के बिना भगवान की कल्पना ही नहीं किया जा सकता ।

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Answered by ashutoshkrmgssl
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Answer:

मै तुम्हारा वेश हूँ, तुम्हारी वृत्ति हूँ

मुझे खोकर तुम अपना अर्थ खो बैठोगे ?"

उल्लेखनीयता को एक उपस्थिति या चिह्न दिया है जो उसके पास ईमानदारी से नहीं है। लेकिन उनके ढंग, व्यवहार और शब्दों के चयन के कारण लोग उन्हें पूरी तरह से विशिष्ट व्यक्ति के रूप में समाप्त कर देते हैं और यदि लेखक पीछे हट जाता है, तो उनका पूरा व्यक्तित्व भी वास्तविक कार्यकाल में दिखाया जाएगा जो वर्तमान में प्रच्छन्न हैं,

Explanation:

  • पंक्तियों में, लेखक यह बताना चाहता है कि उसने उल्लेखनीयता को एक उपस्थिति या चिह्न दिया है जो उसके पास ईमानदारी से नहीं है। लेकिन उनके ढंग, व्यवहार और शब्दों के चयन के कारण लोग उन्हें पूरी तरह से विशिष्ट व्यक्ति के रूप में समाप्त कर देते हैं और यदि लेखक पीछे हट जाता है, तो उनका पूरा व्यक्तित्व भी वास्तविक कार्यकाल में दिखाया जाएगा जो वर्तमान में प्रच्छन्न हैं,
  •  मंचित श्लोक में कवि ने भक्त को ईश्वर का सादृश्य माना है। भगवान भक्त की वास्तविक आवाज में हैं। भक्त भगवान का सब कुछ है। भक्त में भगवान का रूप, वेश, छज्जा और कार्य सभी आवश्यक हैं। केवल भक्त के माध्यम से ही भगवान को समझा जा सकता है, उनकी वास्तविकता को महसूस किया जा सकता है। कवि कहता है हे प्रभु, मेरी वास्तविकता ही तुम्हारी पहचान है। अगर मैं वहां नहीं हूं तो आपको वास्तव में सम्मानित नहीं किया जाएगा। अर्थात् भक्त से भिन्न होकर, भक्त को खो देने से भगवान् अपना अर्थ, अपना महत्व, अपनी पहचान खो देंगे। भक्त के बिना भगवान की कल्पना नहीं की जा सकती।

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