आशयस्थ क. श्रम का यह कैसा उत्सव है! नित्य-उत्सव! अ. जिंदगी तो कुल एक पीढ़ी भर की होती है, पर नेक काम पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रता है। ग. ऐसी चादर तो बस नर्मदा ही बन सकती है और ऐसी चादर तो बस धरती ही ओढ़ सकती है। hindi Chapter Saunarya ki nadi narmada
Answers
Answer:
तीन रंग का नही वस्त्र, ये ध्वज देश की शान हैं,
हर भारतीय के दिलो का स्वाभिमान हैं,
यही है गंगा, यही हैं हिमालय, यही हिन्द की जान हैं,
और तीन रंगों में रंगा हुआ ये अपना हिन्दुस्तान हैं।
Explanation:
चाहता हूँ कोई नेक काम हो जाए,
मेरी हर साँस देश के नाम हो जाए।
Explanation:
नर्मदा के सौन्दर्य का प्रसाद : अमृत लाल वेगड़ के रेखांकन
कलावाक्: रेखाओं में नदी संस्कृति का इतिहास'सौंदर्य की नदी नर्मदा' और 'अमृत्स्य नर्मदा' जैसी कालजयी कृतियों के लेखक और नर्मदा के ही लोकजीवन के रंग-बिरंगे रेखांकनकार अमृतलाल वेगड़ ....
नर्मदा के तटों की परिक्रमा करते हुए, जीवन के कितने ही रूपों और रंगों की आवाजाही की भीड़ में किसी समाधिलीन साधक से, वे वह सब कुछ उसी निगाह से निहारते-परखते रहे, जैसा वह सचमुच था| यही उनकी साफगोई भी थी, ईमानदारी भी| अपना कोई रंग मनमाना, उन्होंने उस पर थोपा ही नहीं| न ही उसके रंग को अपनी कलाकारी से रंगा और पोता ही| इसलिए वह अपने स्वभाव में है वहां, भले ही कहने को यह नर्मदा के बहाने से हो|
उनकी कलम से-
नर्मदा! तुम सुन्दर हो, बहुत सुन्दर। अपने सौन्दर्य का थोड़ा-सा प्रसाद मुझे दो ताकि मैं उसे दूसरों तक पहुँचा सकू। नर्मदा मेरे लिए सौन्दर्य की नदी है। उसका सौन्दर्य मुझे चकित और विस्मित करता है। उसका सौन्दर्य है ही ऐसा। हमेशा नया-नया सा। इस सौन्दर्य की झलक पाने के लिए मैं नर्मदा के किनारे-किनारे 1800 किलोमीटर पैदल चला। एक साथ नहीं, रुक-रुक कर। उद्गम से संगम तक की पूरी यात्रा की। पहाड़ों और वनो में से गया। दुर्गम और खतरनाक शूलपाण झाड़ी में से भी गया, जहाँ आज तक शायद ही कोई कलाकार या लेखक गया हो। नर्मदा जहाँ समुद्र से मिलती है वहाँ उसका 20 किलोमीटर चौड़ा पाट नाव से पार किया।
इस देश के करोड़ो निवासियों के लिए नर्मदा केवल नदी नहीं, माँ है। उसके तट पर ऋषियों ने तपस्या की, आश्रम बनाये, तीर्थ बनाये। नर्मदा-तट के छोटे से छोटे तृण और छोटे से छोटे कण न जाने कितने परिवाजको, ऋषि-मुनियों और साधु की पदधूलि से पावन हुए होंगे। कभी नर्मदा तट पर शक्तिशाली आदिम जातियाँ निवास करती थी। आज भी इसके तट पर बैगा, गोंड, भील आदि जनजातियाँ निवास करती है।