CBSE BOARD X, asked by aditya939958, 4 months ago

आतंकवाद एक समस्या- संकेत बिंदु
(1)भूमिका.
(2)भारत में आतंकवाद.
(3)कश्मीर में आतंकवाद.
(4)होने वाले नुकसान,
(5)नियंत्रण के उपाय.​

Answers

Answered by surya5636222
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भारत और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव का बेशक सबसे ज्यादा असर जम्मू और कश्मीर के लोगों पर पड़ता है. आईएएस छोड़ कर राजनीति शुरू करने जा रहे शाह फैसल का कहना है कि पिछले 15 कश्मीरियों के लिए कितने भयावह रहे हैं वे ही जानते हैं.

इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में शाह फैसल ने अपने हालिया अनुभव शेयर करते हुए बताया, 'हमें लग रहा था कि युद्ध होने वाला है, जो लंबा चलेगा और लोग खुद इसके लिए तैयार करने लगे थे.'

2009 में आईएएस परीक्षा में पहला स्थान पाने वाले शाह फैसल का कहना है, 'ये वो युद्ध है जो हमारे घर में पिछले 30 साल से लड़ा जा रहा है.' शाह फैसल का सवाल है, 'क्या भारत-पाकिस्तान कोई ऐसा विकल्प नहीं निकाल सकते, जिसमें जान-माल का नुकसान न हो?'

बातचीत के दौरान शाह फैसल ने एक ऐसी बात बतायी जो हर किसी के लिए बड़ी चिंता का विषय हो सकती है. शाह फैसल की नजर में घाटी में आतंकवाद को सामाजिक समर्थन मिलने लगा है - और वास्तव में इससे खतरनाक कुछ हो भी नहीं सकता.

जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद कितने खतरनाक हालत में पहुंच गया है पुलवामा हमला उदाहरण है. पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले को कार बम से टारगेट किया गया था जो फिदायीन हमला था. हैरानी की बात ये रही कि हमले की साजिश रचने वालों ने एक कश्मीरी युवक को ही फिदायीन बनाने में कामयाबी हासिल कर ली.

किसी कश्मीरी युवक के आत्मघाती हमले को अंजाम देने की ये पहली घटना है और सुरक्षा बलों से लेकर हर किसी को फिलहाल इसी की फिक्र है. कश्मीरी नौजवान पत्थरबाजी के जरिये सुरक्षा बलों के रास्ते में आकर मदद तो आतंकवादियों की ही करते हैं - और सिलसिला भी लगातार कायम है. ये तो पहले ही साफ हो चुका है कि अलगाववादी नेता इसे पाकिस्तान की फंडिंग के जरिये अंजाम देते रहे हैं. अलगाववादियों के खिलाफ सरकार की हालिया कार्रवाई का फर्क जरूर पड़ना चाहिये.

शाह फैसल की नजर में घाटी में आंतकवाद को सामाजिक तौर पर समर्थन मिलना अप्रत्याशित है. शाह फैसल भी बाकी कश्मीरी नेताओं की तरह इसके लिए केंद्र सरकार की नीतियों को ही जिम्मेदार बता रहे हैं. घाटी के लोगों से बातचीत की वकालत करते हुए शाह फैसल की सलाहियत है कि सरकार को घाटी के अवाम से जुड़ने वाली नीति अपनानी होगी. शाह फैसल का कश्मीर को लेकर कोई ठोस प्लान या आइडिया अभी सामने नहीं आया है, न ही उनकी राजनीतिक विचारधारा या किसी पार्टी के प्रति झुकाव ही सार्वजनिक तौर पर मालूम हुआ है. देखना होगा कि जिस सपने के साथ उन्होंने सिविल सर्विस छोड़कर राजनीति का सपना देखा है वो कैसा है?

हालांकि, घाटी में आतकंवाद के समर्थन मिलने की बात से वो खुद भी हैरान हैं और कहते हैं कि किसी ने ऐसी उम्मीद नहीं की थी.

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