Hindi, asked by abdullahmohd45480, 8 months ago

आत्मा अमर और अजर है। उसमें अनन्त ज्ञान, शक्ति और आनंद का भंडार है। अकेले ज्ञान कहना भी पर्याप्त हो सकता है। क्योंकि जहां ज्ञान होता है वह शक्ति होती है। और जहां ज्ञान और शक्ति होती है। वह आनंद भी होता है। परंतु आविदावशाद वह अपने स्वरूप को भुला हुआ है।​

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Answered by bhatiamona
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आत्मा अमर और अजर है। उसमें अनन्त ज्ञान, शक्ति और आनंद का भंडार है। अकेले ज्ञान कहना भी पर्याप्त हो सकता है। क्योंकि जहां ज्ञान होता है वह शक्ति होती है। और जहां ज्ञान और शक्ति होती है। वह आनंद भी होता है। परंतु आविदावशाद वह अपने स्वरूप को भुला हुआ है।​

संदर्भ : इस गद्यांश में लेखक ने भारतीय दर्शन श्रीमद्भागवत गीता के आधार पर आत्मा के स्वरूप का वर्णन किया है। इस अवतरण के लेखक डॉ संपूर्णानंद हैं।

व्याख्या : देखत कहता है कि आत्मा तो ना कभी मरती है ना कभी बूढ़ी होती है वह अजर है अमर है इसलिए आत्मा के अंदर जो भी अनंत ज्ञान है जो भी अनंत शक्ति है जो भी अनंत आनंद का भंडार है। उसको पहचानने की आवश्यकता है। जब हमने अपनी आत्मा के अंदर ज्ञान, शक्ति और आनंद के भंडार को पहचान लिया तो हमें स्थाई आनंद की प्राप्ति होगी और हमारा परमात्मा से साक्षात्कार हो जाएगा। इसलिए आनंद पाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को आत्मा का ज्ञान होना चाहिए यह आत्मचिंतन द्वारा ही संभव है।

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